दिमाग का ताना बाना।
दिमाग कुछ ऐसा बना है कि इसे आराम की चीजें बहुत पसंद है। इसे आराम करना और सुखप्रद चीजों के बारें में ज्यादा आकर्षित करता है।
दिमाग के खेल बहुत ही निराले है जिसे देखने के बाद आप भी हैरान हो जाओगे। यह देखना ध्यान की स्थिति में देखना है। जिसने अपने मन में कन्ट्रोल करने की सोची है उसने इससे उतनी ही मात खायी है।
अपने भी खेल
दिमाग के साथ-साथ हमारी देह के भी कुछ खेल अलग नहीं है। जिसके कारण हमारा मन बनता है, मन देह के क्रिया कलापों से बनता है। मन वही कार्य करता है। जो हम बॉडी से करते है। कभी-कभी यह वह कार्य भी कर लेता है ऐसी बातें भी सोच लेता है जो इस दुनिया में अपना अस्तित्व ही नहंी रखती है।
मानसिक अवस्थाएं
मनुष्य देह की कुछ ऐसी अवस्था बनाई गयी है जो परिवर्तनशील है समय के साथ-साथ यह परिवर्तनशील होती है। मन विचारों का समूह है जहां हर क्षण हर एक नया विचार जन्म लेता है उसी के अनुसार मनुष्य का हृदय का रवैया भी बदलता रहता है और उसका मुड उसी के अनुसार हो जाता है।
जब यह परिवर्तन आंतरिक तौर पर होता है तो संभव है कि बाहरी तौर पर भी परिवर्तन देखने को मिलेगा।
आंतरिक परिवर्तन के बाद बाहरी परिवर्तन
आंतरिक परिवर्तन के बाद बाहरी परिवर्तन भी संभव है। यह देखने में छोटा सा कार्य लगता होगा लेकिन यह परिवर्तन इतनी तेजी से होता रहता है कि इसका आंतरिक तौर पर पता नहीं चल पाता है।
इसके कई कारण हो सकते है। मन के विचारों को बहुत ही तुच्छ कार्य समझना। इन विचारों की श्रृंखला का अंत बहुत ही मुश्किल है अगर ऋषि मुनि के विचारों को जाने तो वह इसके बारें में कहते है कि इनके बिना जीवन संभव ही नहीं है।
कुछ होशियार लोग इसके चंगुल में फंसते चले जाते है।
कुछ लोग अपने आपको हाई क्वालिटी के लोग समझते है वह इसके चंगुल से निकल ही नहीं पाते है। वह अपने आपको दिमाग के विचारो के हिसाब से चलते रहते है उनका पागल होना स्वाभाविक है क्योंकि अगर हम अपने दिमाग में आए प्रत्येक क्षण बदलते विचारों के हिसाब से चलेगे तो हम पागल भी हो सकते है। क्योंकि इस हिसाब से चलना कोई आसान काम नहीं है। और यह एक तरीके का पागलपन भी है।
दिमाग को लगाम में रखना ही बेहतर
दोस्तों! अगर आप अपने मन के अधीन रहोगे तो हर कदम पर आपको बहुत दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि यह हमें केवल भोग की तरफ ले जायेगा। यह ये नहीं सोचेगा कि जो हमें यह शरीर मिला है उसका भला हो।
यह तो आजतक इसने सोचा ही नहीं है मन एक ऐसा बहरूपिया है एक ऐसा लालची दोस्त है! जो अपना काम निकलने के बाद पीछे मुड़कर भी नहीं देखता है कि बेचारे शरीर का बाद में क्या होगा।
रही बुद्धि की बात यह तो पहले से ही भ्रमित है क्योंकि इसे भ्रम में रखा जा रहा है। जो ज्ञान हम यहां से ले रहे है वह भी तो भ्रम ही है जो कार्य कर रहे उसके प्रति भी कोई निश्चित नहीं है कि इस काम में हम सफल होगें ही होगें।
तो सब भ्रम ही हो रहा है तो बुद्धि तो बेचारी एक तरह का शीशा दिखाने का काम करती है। जो यह कहती है कि देखो मन मैने यह सीखा है कि अगर आप कुए में ज्यादा नजदीकी से देखोगें तो आप गिर सकते हो।
मन कहता है कि अगर मैने अपने आपको मजबूती से अपने आपको किसी रस्सी से बांधकर फिर कुंए में झांकता हूँ तो फिर तुम्हारा यह ज्ञान तो फेल ही जाएगा। तो इसी प्रकार की बातचीत हमारी बुद्धि और मन में चलती रहती है। जो हर क्षण चलती रहती है।
हमारा पुरातन ज्ञान क्या कहता है।
हमारा पुरातन ज्ञान कहता है कि हमें अपने मन पर नियंत्रण रख कर कोई भी कार्य करना चाहिए। हमें अपनी बुद्धि को ज्ञान से प्रखर बनाना है जिससे वह प्रत्येक कारण का जवाब दे सकें।
बुद्धि हमारें आगें बढ़ने में सहायक है। जिससे हम अपना भला तो कर ही सकते है साथ में कुछ व्यक्तियों का भला भी कर सकते है। जो हमारे साथ जुड़े है।
सोचने की शक्ति का ऐसे करे विकास
सोचना तो हमारें मन में हो ही रहा है पर इसे अगर हम समुद्र से जोड़ दे तो कितना अच्छा होगा। समझें। कोई नदी बह रही है अगर इसके जल को हम उन खेतों से जोड़ दे जो हमें खाने के लिए अन्न देते है।
तो कितना अच्छा होगा। उस नदी के जल को उस सागर से जोड़ दे जो पानी का महा भण्डार है। तो हमारें मन में तो सोचने कि क्रिया हो रही है। उसे अगर सकारात्मकता के साथ जोड़ा जाए तो हम अपने आपको सफल व्यक्ति बना सकते है।
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1.अंग्रेजी सीखने का सबसे बेहतरीन तरीका।
3.भगवान हमारे अंदर ही विराजमान है।
4.मन को कंन्ट्रोल करने का केवल एक ही साधन है।
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