मन की करतूत।
ये ना सोचों कि मेरा लिखा पढ़ने से आप सोचोगे कि मैं इस मन को अपने वश में कर के दिखाउगां। सबसे पहले तो यह विचार आपके मन मे जैसे ही आया समझों आप मन के शिकार हो गए।
मन के कारण भगवान को भगवद्गीता को कहना पड़ा।
मन इतना शक्तिशाली है कि भगवान श्रीकृष्ण को मजबूरन भगवतगीता का ज्ञान अर्जुन के द्वारा इस पृथ्वीवासियों के लिए देना पड़ा। कृष्ण कोई छोटे मोटे आदमी नहीं थे। वह एक तपस्वी थें। जिन्होंने अपने अनुभव के आधार पर यह ज्ञान देना जरूरी समझा तो उन्होेंने दिया भी।
ऐसा नहीं कि हमारें ऋषि-मुनियों ने हमें कुछ नहीं दिया ब्लिक यू कहांे के बहुत कुछ दिया है उन्होंनें हमें अपनी तपस्या का ज्ञान उन्होंने हमें दिया है जिसे आज हम बेकार समझकर वेद या भगवद्गीता को एक साधारण सी पुस्तक मानकर छोड़ देते है। एक व्यक्ति जो राजसी प्रवृति का है उसे तो यह सब बकवास ही लगेगा।
लेकिन एक व्यक्ति जो सीधा सच्चा और अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार है उसकी समझ में भी आएगा और वह इस रास्ते पर भी जायेगा। याद रखना जिस व्यक्ति की जैसी प्रवृति होती है वह उसी के हिसाब से ज्ञान को प्राप्त करता है। बाकी सब तो तपस्या से ही हासिल किया जा सकता है।
मन का उतावलापन।
मन के पास एक ऐसा उतावलापन है जो कि हमें बैचेन कर देता है। हमें मन को शांत कर उसे बहुत ही सावधानी से कोई भी काम देना चाहिए। एक उतावलेपन से अगर हम काम करेगें तो हम इस उतावलेपन में कभी भी कोई कार्य ठीक से नहीं कर पाएगें। एक आधा-अधूरा मन होगा।
अधूरा कुछ भी हो दुःख ही देता है। चाहे वह ज्ञान हो। चाहे वह अभ्यास हो। चाहे वह किसी कार्य को सीखना हो अगर अधूरा सीखोगें। तो कभी भी कामयाब नहीं हो सकते हो।
मन पर यू ही कन्ट्रोल ना करें।
मित्रों में आपको बताना चाहूंगा कि मन हमारा दुश्मन नहीं है और हमारा मित्र भी नहीं है। यह एक ऐसा यंत्र है जिसे जिस प्रकार के निंर्देश दिए जायेगे यह उसी प्रकार का व्यवहार हमारे साथ करता है। यह कम्प्यूटर की तरह है। अगर हम इसे विनाश की कमाण्ड देते है तो यह विनाश की मिसाइल छोड़ देगा। अगर हम इस आनन्द की कमाण्ड दे तो यह हमें आनन्द ही आनन्द देगा। तो मित्रों इसके बारें में आप निर्णय करों कि आप किस प्रकार कार्य करना चाहते है।
मन को कन्ट्रोल करने का केवल एक ही साधन है।
मित्रों मन पर कन्ट्रोल पाना इतना आसान नहीं है पर ज्ञान और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है ज्ञान इसे सही मार्ग पर चलने की शिक्षा देता है और वैराग्य से यह सीधा प्रभु के चरणों में जाता है। पर यह केवल बार-बार अभ्यास करने से ही होगा। एक बार कहने से या करने से नहीं होगा।
इस पर बार-बार कार्य करना होगा। जैसे किसी प्रोजेक्ट पर हम कार्य करते है उसी प्रकार इस पर भी एक समय का निर्धारण कर
अपने ऊपर विश्वास करना बहुत कठिन।
अपने ऊपर विश्वास करना बहुत ही कठिन कार्य होता है। अगर यह कठिन लगने वाला कार्य आप आसान बना सको तो समझों आपने अपनी जिंदगी आसान बना ली। अपने आप पर विश्वास करना खुदा पर विश्वास करने का पहला चरण है। पर यह हो नहीं पाता है मनुष्य गलतियों का पुलता है।
और यह गलतियां हर रोज होती है हर क्षण होती है तो विश्वास करना कठिन है। पर अगर आप इन गलतियों से सीख कर अपने आप को मजबूत बना लों तो इससे आसान भी इस दुनिया में कुछ नहंी है। हम दैनिक जीवन में बहुत से काम करते है क्या हमने इनके बारें में सोचा है कभी कि हम इन्हें अलग तरीके से कर सकते है।
हाँ अगर आपने एक कार्य को भी समय दिया है तो मान के चलों अगर आप उसे अगली बार करोगों तो आपको 50 प्रतिशत उसमें सरलता हासिल कर लोगे उसे करने में । यही महारत हासिल करने का सफर शुरू होता है क्यांेकि हमारें बीच रहकर ही कुछ लोग सीखते रहते है। और हम लोग समय ऐसे ही गुजारते रहते है। यही फर्क होता है हममें और एक्सपर्ट लोगों में ।
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