दीपावली से पहले तैयारी पूजा की।
दिनांक 14 अक्टूबर 2024 दिन सोमवार दोपहर एक बजें के आसपास हम समबालेहड़ी पहुंचे। पदम बाबाजी और दादीजी के हम कपड़े लेकर गए थे। इसके बाद हमने पूजा की। दादाजी रूई से बत्ती बनाती है और 110 रूपयें किलों के हिसाब से वहंी ले जाता है जो उन्हें रूई देकर जाता है। सो अच्छा बिजनेस है। इसके अगले दिन मंगलवार को दिनांक 15 अक्टूबर 2024 को हम मां शाकुम्बरी देवी जाते है। आवेश और उसकी पत्नी शीतल और उसके दोनों बच्चे भी हमारे साथ जाते है। जाते तो है हम जिधर को मेमता जी रहती है। श्याम सिंह की ओर से जाना होता है पर आवेश आते समय सहानपुर की ओर से जाता है पर हम पटनी की ओर से ही अपने घर लौटतें है।
घर से हम हलवा पूरी बनाकर लेकर जाते है। और शुरू में भैरोंनाथ के मंदिर में जातें है। वहां हम लाईन में लगते है सबसे पीछें और आधा घंटा में ही हमारा नंबर आ जाता है यानिके हम अन्दर मंदिर में प्रवेश कर जातें है। इसके बाद हम आगंे मां शाकुम्बरी देवी के मंदिर जाते है। वहां पर हम एक प्रसाद की पलड़ी खरीदतें है। जिसमें पान, नारियल, चुनरी, और प्रसाद होता है 60 रूपयें का देता है यह प्रसाद हम रास्तें में से ही खरीदते है एक प्रसाद बेचते हुए लड़के से।
इसके बाद हम मां शाकुम्बरी मंदिर में भी सबसे पीछे लगते है पर वहां भी आधे घंटे के अंदर ही हम मंदिर में प्रवेश कर जाते है और मंा के चरणों में प्रसाद चढ़ातें है। फिर हम मंदिर से बाहर आते है। वहां पर शिवी और उदय कार लेने के लिए जिद करते है रोते है। थोड़ा आगे चलकर हम कढ़ी चावल और हलवा प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है। इससे थोड़ा आगे चलकर हम फिर दोबार से प्रसाद ग्रहण करते है। मुझे कुछ अधिक भूख लगी होती है तो मै थोड़ा और खाने के लिए कहता हूँ इस मेरी पत्नी कहती है आप तो यहां खाने के लिए ही आते हो। फिर मैं नही खा पाता हूँ क्योंकि वह अपनी बहन के साथ बच्चों के लेकर आगे चली जाती है तो मजबूरन मुझे भी भूखा ही आगे जाना पड़ता है।
उदय एक टैªक्टर खरीदता है जिसकी कीमत 100 रूपये होती है। वहां थोडी आगे चलकर मै एक डिबें में कढ़ी लेता हूँ घर के लिए।
घर से आते वक्त मैंने 150 रूपये और आवेश ने 200 रूपये का तेल डलवाया था मोटर साईकिल में।
हमने भौरोंनाथ पर जब प्रसाद चढ़ाया था तो मोटर साईकिल हमने बाहर ही खड़ी की थी। कोई किराया हमने नहीं दिया था। लेकिन जब आगे मां शाकुम्बरी देवी पर गए तो वहां के लिए हमने गाड़ियां पार्किग में खड़ी की थी और हमसें 20 प्रति मोटरसाईकिल पर्ची लिए थे पार्किग वालों नें।
इसके बाद लौटतें समय हमने पर्ची दी और अपनी-अपनी मोटर साईकिल पार्किग में से निकाली।
इसी दिन शाम के समय पिंकी की माताजी ने मुझसे फोन पर बात की थी कि मेरे घुटनों में दर्द है और पूजा अपने घर है। गोविन्दा के कहने पर पूजा घर पचास हजार रूपये देकर गयी थी। क्यांेकि उन पैसों का जमीन वालें को देने थे। पैसे देकर पूजा अपने घर नकुड़ चली जाती है।
गोविन्दा की माता अपने आप भोजन तैयार करती है। उसी दिन शाम को उनके यहां किसी की मृत्यु हो जाती है उसने दवाई खा ली थी। घर में कुछ अनबन के कारण।
सोमवार के दिन हम सबहालेहड़ी जाते है हम जाकर बैठते ही है कि घर से गीता का फोन आता है कि मुझे गंगोह जाना है मेले में अंजू के साथ अंजू भी जब ही आ गयी थी तब हम घर से सबहालेहड़ी के लिए मैनें अपनी मोटरसाईकिल नीचे उतारी ही थी।
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