2024 की दीपावली
दीपावली का अर्थ होता है दीपों का त्योंहार।
दीप अर्थात घी या तेल के दीपक और वली का अर्थ होता है पंक्ति। दोस्तों हमारे देश भारत में के हर राज्य में या यू कहें कि पूरे भारतवर्ष में दीपावली का त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। पर गांव और राज्य की पूजा के आधार पर सभी की दीपावली एक खास विशेषता लिए हुए होती है।
यहां अगर मैं बात करूं अपने गांव की मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से संबंध रखता हूँ। इस वर्ष दीपावली का त्यौहार दिनांक 01 नवम्बर को मनाया गया। कुछ लोगों ने दीपावली को त्यौहार एक दिन पहले यानिके 31 अक्टूबर को शाम चार बजे के बाद मनाया क्योंकि इस वर्ष मुहूर्त शाम चार बजें के बाद का ही निकला है।
बात करते हूँ अपनी दीपावली की। हमने 1 नवम्बर 2024 दिन शुक्रवार को मनाया था।
सुबह की तैयारी कैसी रही
सुबह के समय हम सभी नहाए धोए इसके बाद हम अपने जन्म स्थान गांव में जाने के लिए तैयार हुए। हम जो घर के लोग सत्ती पूजा के लिए गए उनमें थे मेरी बहन गीता और प्रवेश की दोनों लड़कियां और मेरे दोनों बच्चे और साथ ही मेरी पत्नी और मेरे भाई की पत्नी हम सब लोग गए थे। पहले मैं बच्चों को सत्ती पर छोड़कर आया इसके तुरंत बाद मैं इन दोनों गृहणीयों को ंलेने के लिए गया जब मैं उन्हें लेने के लिए पहुंचा तो वह पटरी पर आ चुकी थी जो गांव अतरगढ़ जाने के लिए मुड़ती है। फिर मैने उन दोनों को लिया और सत्ती पर पूजा करने के लिए रूके ।
सत्ती पर पूजा के लिए सामग्री।
सत्ती पर पूजा के लिए जो सामग्री होती है वह होती है खीर, पतासे, धूपबती, घी, सामग्री थोड़ी सी हल्दी माता सत्ती को तिलक लगाने के लिए।
खीर, धूपबती, माचिस, थोड़ा सा घी, हल्दी एक छोटे से डिब्बें में हम घर से लेकर ही चले थे। सत्ती पर पूजा करने के बाद हम बाबा की छतरी पूजा करने के लिए गए थे।
वहां पर धूपबती और धर से लायी गई खीर और अंगारी पर घी डालकर पूजा की।
फिर हम सीधे सोनित के पास घर आए पहले हमने खेडे पर चाचा को देखा तो वह दोनों सोऐ हुए थे। चाची जी ने चादर ओढ़ रखी थी और लेटी हुई थी चाचा भी लेटा हुआ था सो हम सीधे हम घर पर चलें गए। वहां हमने पहले चाय पी फिर मैने थोड़ी सी खीर खाई।
इसके बाद हम 15 मिनट के लिए ठहरे और फिर छोटे बच्चों को हमने 70 रूपये दिए। इसके बाद हम घर पर आ गए। मैं बहन गीता और बच्चों को लेकर आया कुलदीप चाचा का लड़का अपनी दोनो भाभीयों को लेकर आया।
शाम ढाई बजें हम शहर यानिके शुगर मील पर सामान खरीदनें गए।
वहां जाकर हमने माता का सामान खरीदा।
सवा मीटर काला कपड़ा खरीदा जो कि 30 रूपये का दिया। इसके बाद हमने एक चुनरी खरीदनी चाही पर उसने 95 रूपये की बताई पर यह हमारे घर के पास बहुत ही कम कीमत पर मिल जाती है सो हमने उसको खरीदने से मना कर दिया।
इसके बाद हमने छह खोफे के गोले खरीदे भईया दूज के लिए जो कि 240 रूपये किलों दिए। और छह गोले 900 गा्रम वजन के थे जिनकी कीमत 220 रूपये की थी दुकानदार को मैनंे कुछ कम करने को कहा लेकिन उसने नहीं किए।
इसके बाद हमने खील खरीदी जो कि 120 रूपये किलों दी हमने एक पाव खरीदी और पतासे भी इसी भाव के थे। सो हमने 20 रूपये के खरीदें।
एक टोकरी खरीदी जो कि 20 रूपये की थी। एक माता का सिंगार खरीदा जो कि हमने गांव से ही लिया था। एक मीठा पान भी लिया था जो कि डंडी के साथ लगवाया था कीमत दस रूपये थी। इसमें उसने पूरा पान का पत्ता डंडी के साथ चूना लगाकर, छाली, सौफ, और मीठी चटनी रखकर पैंक करके हमें दिया। मेरे पास पँाच सौ का नोट था जिसमें से उसने मुझे चार नोट 100-100 के और 90 रूपये दिए 90 रूपये में 1 नोट पचास का और 2 बीस-बीस के थे।
सामने जो रघुनाथ की दुकान के बाहर बैठता है उससे पान लिया था। पांच गूंदी के लडडू भी लिए थे जिसको मैनें 10 रूपये नगद और 15 रूपये उधार हो गए थे। यानिके उसने मुझे पीले लडडू गूंदी के 25 रूपये के दिए थे ।
यह सामान खरीदनें के तुरंत बाद हम मंदिर में गए थे लगभग चार या पांच के बीच का समय था साढ़े चार के बाद का ही समय है जो कि मुझे अच्छे से याद है।
सती और बाबा की छतरी पर पूजा करने से पहले की तैयारी।
सती और बाबा की छतरी पर पूजा करने से पहले हम इनकी पुताई करते है। और गेंदे के फूल से हम उसे सजाते है। एक बड़ी परांत में खीर रखी जाती है जो कि सभी लोगों को पूजा करने के बाद प्रसाद के रूप में दी जाती है। सबसे पहले सती पर हवन का आयोजन किया जाता है।
शाम के समय खेडे और मंदिर पर तेल या घी के दिए घर से जलाकर ले जाए जाते है।
और एक हाजरी भी शाम के समय दी जाती है जो कि एक छोटी सी कच्ची देंग जिसको कहा जाता है उसमें एक पान का पता और उसमें पान के पत्तें के ऊपर आटे का दिया और उसमें तेल और चार बत्ती रखी जाती है जिसको दिए में चारों तरफ से चलाया जाता है अर्थात चौ मुखी दिया जलाया जाता है। सभी परिवार वालों को एक जगह बैठाकर, सभी बच्चों को एक साथ बिठाकर घड़ी की दिशा में देंग हाथ में लेकर जलाकर सात बार सिर के ऊपर से फिराया जाता है और दरिया में दे दिया जाता है। घर की सुख शांति के लिए।
अंत में निष्कर्ष
दीपावली का सामान
जूगडे लगभग पचास
एक बड़ा दिया लक्ष्मी के आगे जलाने के लिए
लक्ष्मी की मूरत
शाम के समय एक छोटी कच्ची देंग ऊपर से ढकने के लिए एक सुराई पान का पत्ता लौंग।
खील आधा किलो बहुत होती है। परिवार के हिसाब से
पतासे
बच्चों के लिए पटाखें इत्यादि।
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