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मनुष्य जब पैदा होता है तो जन्म लेने के बाद कुछ वर्षों तक उसकी याददाश्त बनी रहती है

ईश्वरीय प्रेरणा से यह सबकुछ में यहां लिख पा रहा हूँ। 

 यादों के झरोंखों से 

मनुष्य जब पैदा होता है तो जन्म लेने के बाद कुछ वर्षों तक उसकी याददाश्त बनी रहती है

जिंदगी के ऐसी यात्रा जो कभी आपने वेदों में भी आपको ढूढने से नहीं मिलेगी। यह सच्ची घटनाएं है। 

आज आपको एक ऐसे दरवाजे के बारें में बताने जा रहा हूँ जिसके बारें में शायद आपने नही सुना होगा।

मनुष्य जब पैदा होता है तो जन्म लेने के बाद कुछ वर्षों तक उसकी याददाश्त बनी रहती है कि मै कहां से आया हूँ। उसके तीन से चार वर्ष के बाद यह पहचान फीकी पडने लगती है। जैसे-जैसे हम बड़े होते रहते है तो हम अपने उद्गम स्थल को भी भूलते रहते है। 

यानिके आप ये मानके चलों कि जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसे अपने उद्गम स्थल का पूरा ध्यान रहता है जिस प्रकार हम कही गांव जाते है और हमें अपने घर का तो पता होता है। 

लेकिन अगर हम अपने नान-नानी के यहां ज्यादा दिन तक रह लेते है तो धीरे-धीरे जो बदलाव समय के साथ होता है जैसे किसी ने गांव घर नए बनाए हो सड़क टूटी हुई थी तो सड़क नई बन गई है। 

जब हम अपने नाना के घर से आते है तो यह सब बदलाव हम महसूस करते है। कि देखों एक महीने कितना बदल गया है

 और हमें अपना घर भी बहुत ही अजीब सा लगता है अजनबी सा महसूस होने लगता है। ठीक उसी प्रकार जब हम जन्म लेते है तो हमें अपना उद्गम स्थान पूरा ध्यान होता है पूरी तस्वीर बिल्कुल स्पष्ट होती है कि हमनें इस गर्भ को क्यों चुना है कितने दिन हमें यहां रहना है 

क्या-क्या हमारें साथ इस जीवन में होने वाला है। सभी कुछ अपने आप को पता होता है एक पूर्ण योगी हम होते है हम अपनी मर्जी से जन्म लेने से पहले अपनी मां की कोख में जो शरीर है उसमें प्राण के रूप में रहते है और अपनी मर्जी से बाहर आ जाते है। 

यह प्रक्रिया हमारे साथ होती है हम एक पूर्ण योगी का जन्म बिताते है। पर हमें यह पता नहीं होता है कि जहा हम जन्म लेने वाले है जिस माहौल घर-परिवार में हम जन्म लेने वाले है वहां कि स्थिति परिस्थिति कैसी है 

क्योंकि हम जब माता के गर्भ से बाहर आ जाते है तो हमें भान तो सारा रहता है यानिके याद तो सबकुछ रहता है लेकिन धीरे-धीरे भूख प्यास और अन्य घर के कार्याे के वजह से यह हमारी याददाश्त फीकी हो जाती है। पूरा ज्ञान स्वयं को होता है पर उस समय यह चल रहा होता है

 कि एक बार बड़ा हो जाउ तो इस घर की सारी समस्याएं परेशानी में जड़ से खत्म कर दूंगा जो कि हम परेशानी या दुःख को खत्म करने के लिए ही एक घर में जन्म लेते है कारण होता है या तो उस समाज के बारें में सोचकर हम जन्म लेते है 

या फिर उस घर के दुःखों को दूर करने के लिए हम जन्म लेते है और मृत्यु के समय फिर हमारे सबकुछ  याद आ जाता है क्योंकि फिर से वही याददाश्त हमारी जवां हो जाती है फिर हमें याद आता है कि यार जिस कार्य के लिए मैनें जन्म लिया था 

वह तो मैने किया ही नहीं है। मै आपको बताता चलूं कि सूक्ष्म शरीर की कोई आयु नहीं होती है और ना ही उस पर सुख दुख का आभास वहां उस शरीर में होता है वहां पर हम सम्पूर्ण होते है 

वहां पर भूख प्यास भी नहीं होती है वहां केवल उस वस्तु पर ध्यान या विचार लाने पर वह वस्तु प्रकट हो जाती है अतः उस जीवन के बारें में तो कल्पना भी नहीं कर सकते है वहंा तो हम आनन्द से होते है। 

यह सब इस समाज के बारें में होता है। कि हमें या किसी महापुरूष को जन्म इसलिए लेना पड़ता है क्योंकि जो सोच कर उसने जन्म लिया था वह कार्य अगर पूरा नहीं हुआ तो उसका जन्म लेना कोई मायने नहीं रखता है। चाहे फिर उसे सौ जन्म क्यों ना लेने पडे़। 

क्यांेकि आत्मा से हम ज्यांे के त्यों रहते है ये समय भागदौड़ केवल हमारे इस मिट्टी के शरीर के लिए है यह सुख दुख भी इसी शरीर के लिए है इसी  के लिए रिश्ते नाते बने है 

इसी के माता-पिता बने होते है। हमारे जो पिता है वह तो केवल परमपिता परमेश्वर है जो कि महाऊर्जा में विद्यमान है जिसकी बराबरी इस पूरे संसार में कोई नहीं कर सकता है यहां मेरा मतलब संसार से उस जगत से है जिसमें पूरा ब्रहामाण्ड समाया है जिसमें चांद, तारें, आसमान, पाताल सब कुछ इसी में है। 

इसे मैं यहां संसार कह रहा हूँ यह संसार केवल पृथ्वी तक सीमित नहीं है ऐसी तो न जाने कितनी पृथ्वी इस आकाश में होगी।

ऐसे ऐसे ग्रह है जिसके नाम भी हम नहीं सोच सकते है। वह एक महान ऊर्जा है जहां कोई डर नहीं क्योंकि सबकुछ उसी से निर्मित है। तो काल समय ये सबकुछ वहां नहीं होता है। समय भी ईश्वर ने बनाया है। 

वेदों का सच

वेद में क्या है ज्ञान। एक ऐसा ज्ञान जो हमें बताता है ईश्वरीय ज्ञान के बारें में पर क्या यह अपने आप मे पूर्ण है। नहीं यह ज्ञान प्राप्त करने के बाद भी आप ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते है। क्यांेकि वहां तक जाने का केवल एक ही मार्ग है जो कि है जिसका नाम श्रद्धा है। 

यह वह सीढ़ी जिसके मन में यह उत्पन्न हो गयी वह अपनी नैया लेकर सीधे प्रभु के कमल चरणों तक पहुंचा है श्रद्धा क्या है विश्वास का वो बीज है जो पुरूषार्थ करते समय धीरे-धीेर पौधा बनता है उस पौधे से पेड़, पेड़ से वृक्ष बनता है और फिर उसी वृक्ष पर फल और फूल लगते है जो कि उसके किसी काम के नहीं है वह फल-फूल इसी संसार के काम आने है। इसी का नाम श्रद्धा है। जो कि विश्वास के गर्भ से जन्मती है। 

एक व्यक्ति अपने कर्म से ही महान बनता है। 

एक व्यक्ति जिसने इस धरा पर जन्म लिया है वह अपने कर्म से ही महान बनता है। अच्छे कर्म करेगा तो वह अच्छा होगा और बुरे कर्म करेगा तो वह बुरा बनेगा। यह लोग कहते है। ईश्वरीय ज्ञान यह नहीं कहता है। केवल किसी के हित में किया गया कार्य ही सदा फलता है। हम इसे एक उदाहरण से समझते है मान लीजिए एक भैंस है उसके पीछे कसाई लगे हुए उसे मारने के लिए ।

भैंस हमें पता है कि किस दिशा में गई है। लेकिन अगर वह कसाई हमसे पूछे कि भैंस किस दिशा में गई है तो यहां हम सच बोलकर किसी की जान को जोखिम में नहीं डाल सकते है। अगर हम यहां झूठ भी बोलते है इसी स्थिति में तो वह झूठ हजार सत्य से भी बढ़कर होगा। 

इसी को कहते है पूण्य कमाना।

सत्य किसी की जान नहीं लेता है सत्य जान प्राण को देता है। जहां किसी की भलाई के लिए आप पहला कदम उठाऐगे समझों ईश्वर ने एक कदम आपकी तरफ रख दिया है। इसी को कहते है ईश्वर के लिए पहला कदम बढ़ाना।

सुबह-शाम आप कितनी भी धूप अंगारी जलाओं आपको कुछ मिलने वाला नहीं है लेकिन किसी की एक बार मदद करने से जो सुख हमें मिलता है वह आप स्वयं महसूस करके देखना तो यहां स्पष्ट है कि हम यहां बाबाओं के चक्कर में ना पड़ें। सुबह शाम परम धाम का स्मरण करने के लिए बैठों ना कि अपने सुखों को पूरा करने के लिए।


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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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