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बचपन की गलतियां

 


बचपन की गलतियाँ
बचपन की गलतियां

बचपन की गलतियों के कारण हमें बहुत ही गिल्टी महसूस होता है पर वास्तव में यह एक अकेले के साथ नहीं होता है यह पूरी मानव जाति के लिए है। हम जैसे बड़े होते जाते है हमारी समझ का दायरा बढ़ता है। हमें पता चलता है कि जिस कार्य को हम अकेले में चोरी छुपकर कर रहे थे वह कार्य सभी करते है।

कुछ समझदार लोग उठाते है इसका फायदा।

समाज में सभी प्रकार के लोग होते है जो यह समझ लेते है कि मुझे इस तरह का काम करके बहुत पैसा मिल सकता है आप लोग देखते भी होगें सड़क के किनारें कुछ इस तरह के ही लोग होते है जो बिना किसी की परवाह के यह सब काम करते है सेक्स की खुलेआम दवाई बेचते है भले ही उससे किसी कोई आराम न मिलें।

शुरूआत अकेले से होती है हस्तुमैथुन की।

हस्तमैथुन एक ऐसी ही क्रिया है जिसे कोई बताता नहीं है बल्कि दिमाग में अपने आप आने वाला विचार है। अगर कोई सोलह साल का बच्चा घर में अकेला है तो यह फितूर उसके ऊपर अपने आप चढ़ जाता है। 

            उसके दिमाग में एक साथ कई विचार आएगें एक विचार बताएगा कि मेरे पास कोई ऐसी लड़की हो जो यह मेरा काम कर सकें। दूसरा विचार आता है कि समाज के लोगों को पता चल गया तो वह क्या सोचेगे। 

इस विचार में डर भी होता है जो कि आगे बढ़ने नहीं देता है। और एक विचार ऐसा आता है कि जो सब का अंत कर देता है वह है बच्चे का कि यदि मेरे साथ ऐसी अनहोनी हो गयी तो मै करियर पूरा बर्बाद हो जाएगा। 

           अंत में बच्चे के दिमाग में कुछ ऐसा आता है कि मैं यह कार्य क्यों कर रहा हूँ सब एक समय पर खत्म हो जाता है वह वीर्य नाश का जहां वीर्य नाश हुआ इसकी तमन्ना भी जाती रहती है।

                    तो बच्चा ऐसा कुछ बनाने की सोचता है जो कि उसके लिए सुलभ हो उसे कोई देख भी ना सकें ऐसा वह कई वस्तुओं के साथ करता है पर अंत में जो बनता है वह है हस्तमुद्रा।

 इस हस्तमुद्रा को लेकर वह अपना एक आविष्कार समझता है पर जैसे ही यह बात समाज से उसे पता चलती है तो उसका यह आविष्कार धरा का धरा रह जाता है।

इच्छाओं की पूर्ती

एक समय ऐसा आ जाता है कि इच्छाएं पूरी ही नहीं हो पाती है। इच्छाओं का दायरा अब बढ़ जाता है। एक ऐसी तमन्ना होती है कि बस एक बार इस अंग को देख लूं। इसे महसूस कर लूं। 

          इसका प्रयोग करके देख लूं। यही तमन्ना उसकी पूरी ही नहीं हो पाती है। व्यक्ति इसे जितना जल्दी करने की सोचता है उतना ही लेट होता जाता है। इन इच्छाओं की पूर्ती एक ऐसे माहौल का जन्म दे देती है कि व्यक्ति की जान पर बन आती है। 

अब आप कहेगें की प्यार की जड़ से यह पनपता है नहीं सेक्स की जड़ पर प्यार लगता है प्यार का नाम होता है उसके पीछे सेक्स का ही एक मकसद होता है जो की पूरा ही नहीं हो पाता।

इच्छाओं के कारण ही मानव इस शरीरधारी वेश में फंसा

इच्छाओं की पूर्ती होकर भी नहीं होती है। इसका कारण है एक इच्छा से दूसरी इच्छा का जन्म होना। एक इच्छा के समाप्त होेते ही दूसरी इच्छा जन्म ले लेती है। और यह क्रम तब तक नहीं रूकेगा जब तक हम अपनी बुद्धि को वश में नहीं करेगें। बुद्धि को वश में करने से मन वश में आता है। मन वश में आ जाने से ही मानव कल्याण जुड़ा है।

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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