उड़ने का हौसला
एक परिवार के लोग होते हुए भी भीतर ही भीतर जलन होती है कि अगर ये आगे निकल गया ना मेरी तो कोई इज्जत ही नहीं करेगा।
ऐसा करता हूँ इसे कुछ करा देता हूँ। अब इसे मार भी नहीं सकता क्योंकि यह मेरा सच्चा रिश्तेदार है या खून का रिश्ता है। ऐसी बहुत सी बातें होती है दोस्तों कौन किसी के अन्दर झांककर नहीं देख सकता है कि किसी भीतर कौन सा भूत है। खुद के भरोसे उड़ने के लायक नहीं है माता-पिता को सहारा समझते है।
भाई-बहन को हमसफर अपने दोस्त हर काम में मदद करने वाले। पर धीरे-धीरे ही पता चलता है कि भाई बहन कोई किसी का नहीं होता है यह सब एक आंख का धोखा है कि कब आप पलक झपकोगें और यह भरोसा टूट कर चूर हो जाएगा।
इन रिश्तों के सहारें आदमी पहले उगुली पकडकर चलना चाहता है पर धीरे-धीरे पता चलता है कि जिस काम को करने के लिए हम जिस उगुली को पकड़कर चल रहे थे उसे तो इसी ने ही रोक दिया है।
पहला विश्वास का बलबूला वही फूट जाता है हम हारे से बैठ कर बस सोचने लगते है। और आदमी करे तो क्या करें।
एक नई सोच एक नया विचार फिर आता है कि चलों अपने ना सही दोस्त ही सही पर धीरे-धीरे दोस्ती की विश्वास की डोर भी टूटने लगती है पता चलता है कि एक कहावत है कि गैर मारेगा तो बाहर धूप में ही पड़ा रहेगा। और अगर अपना मारे तो कम से कम छांव में तो डालेगा।
पर मरना तो तय है इसमें दोहराए नहीं है। अब बात करें मरने की तो मरने के बाद उसे व्यक्ति का क्या पता कि उसे धूप में डाला जा रहा है या छांव में। उसे किसी अग्नि में जलाया जा रहा है या जमीन में दफनाया जा रहा है। या जंगल के पशु-पक्षी उसे खा रहें है। उस मिट्टी को अब क्या पता।
जितना किया हौसला उतना ही गया मैं टूटता
बड़ी किताबें पढ़ी। बड़े बड़े आदमियों की, ज्ञानियों की बातें सुनी। सुनकर, पढ़कर यही सीखा कि बेटा गिरकर फिर से उठना ही जिंदगी है। इसी का नाम जिंदगी है। पर मैनें जितना ऊपर उठने का हौसला किया उतना ही मेरा हौसला टूटता गया।
कोई यहां हाथ पकड़ने वाला नहीं है भई! हां पैर पकड़कर नीचे गिराने वाला यहां हर कोई है चाहें वह मजाक में खीच ले या फिर किसी ओर तरह। लोग मजाक कर रहें है यह बताते है पर वास्तव में वह यही काम करना चाहते है।
इसे वास्विकता के रूप में करने के लिए उन्हें जोखिम उठाना पड़ सकता है इसलिए सहारा लेते है मजाक का। मै तो मजाक कर रहा था। अपनों को अपना समझा पर अंत मै बैगाने नजर आए।
दोस्त को दोस्त समझा अंत में दुश्मन हो गया। घरवाली को साथी समझा वह भी अंत में बेवफाई कर गयी। भगवान मानने के है किसी का सहारा वो भी नहीं है अगर मेरे पास पैसा है तो भगवान अच्छा है।
भगवान है। हमारे अंदर ही है। अगर पैसा नहीं है किसी काम में अड़चन आ जाए तो भगवान में श्रद्धा नहीं है पूरे मन से भगवान को पुकारा नहीं है। मन साफ नहीं हैं। हमारा जितना भी हौसला होता है इन कारणों की वजह से पूरा धूमिल हो जाता है।
जिस जहर को हम अपने अंदर ही अंदर पीते रहते है। यह जहर एक शराबी बना देता है। समाज तो यह स्वीकार के लायक है ही नहीं कि मैं किसी का साथ दे सकूं।
हां ज्ञान देने का हर कोई बैठा है अगर वास्तव में हम उसी रास्ते पर चल पड़े तो फिर क्या लग गए हजारों दुश्मन पीछे । दुश्मन बनाता कौन है वही लोग जो आपको ज्ञान देते है। कामयाबी को स्वीकार करना किसी गैर की हर किसी के बस में नहीं है।
अपनों ने की पहली शुरूआत
अपने जिनके साथ खून का रिश्ता होता है अपने भाई-बहन अपने माता-पिता, अपने चाचा-चाची, नानी-नानी, दादा-दादी ये रिश्ते अपने खून के और इनमें कुछ रिश्ते खून के ना भी हो तो भी बहुत करीब के रिश्ते तो है ही। इन रिश्तों से ही संसार बनता है इन रिश्तों से समाज बनता है।
ये एक ऐसी रिश्तों की डोर से बंधे है जिस डोर को धेखा तो नहीं जा सकता। पर हां इतना हम इन्हें मानते रहेगंे निभाते रहेंगें इतना तो रिश्ते है पर जिस दिन हमने इनमें जरा सी भी लापरवाही कर दी उस दिन यह डोर कमजोर होकर टूट जाती है। इन रिश्तों पर मुझे इतना विश्वास था लेकिन सब धीरे-धीरें छिन बिन हो गया। एक पथराई आंखों से आज भी देखता रहता हूँ।
क्या बिगाड़ा था मैने किसी का
आज इतना मजबूर हो गया हूँ कि अपने सही कार्य करने के बाद भी अपने पर शक होता है कि कही मैनंे तो गलती नहीं कर दी। हर व्यक्ति मुझे ऐसे देखता है जैसे कभी देखा ही नही हो किसी को।
दोस्तों! प्रत्येक कार्य मैं इतनी सावधानी से करता हूँ कि कोई गलती न हो पर फिर भी अगर गलती से , गलती से कोई थोड़ी बहुत गलती रह भी जाती है तो उसमें भी मुझे ऐसा लगता है कि न जाने कितनी बड़ी गलती कर दी मैनेे। आज मैं ऐसा व्यक्ति बन चुका हूँ जिसे लोग अपना मतलब सिद्ध करके दोबारा पूछते भी नहीं कि भई! कैसा है तू।
किसान के खेत में गन्ना होता है उसे लोग चूसते है और उसके छिलके से रस निकाल कर छिलका फेंक देेते है। पर वह छिलका ऐसे भी नहीं कि किसी एक जगह ही रख दें। आते जाते भी गाली देते है, उस छिलके को देखकर। तो अपना भी कुछ हाल ऐसा ही है।
एक अच्छी शुरूआत जो आज तक खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।
एक अच्छी शुरूआत कैसे होती है पता नहीं भई कैसे होती है हमें ये पता है कि जब से जन्म लिया है जब से संघर्ष किये जा रहे है। कोई रोशनी की किरण दिखाई ही नहीं देती है। कहां है वह ईश्वर जो कहते है कि अगर कोई मनुष्य मेरी ओर एक कदम बढ़ाता है तो मैं उसकी ओर दो कदम बढ़ाता हूँ कहां गया वो गीता का भगवान। कहां गए ये देवी-देवता जिनको हम दिन रात पूजते है। कहां गई ये दुनिया जो हर वक्त बड़ी बड़ी बातें करती है। कहां गए वह संत जो कहते है कि एक बार करके को देखो ईश्वर साक्षात आपके साथ ही है।
पता नहीं कहां जाना है।
हम यहां पृथ्वी पर रहते है हर व्यक्ति कहता है कि तू नर्क जाएगा अगर तूने कोई गलत कार्य किया ठीक है अगर किसी ने सही कार्य किया तो वह स्वर्ग का भागी बनेगा। चलों ठीक है।
पर मुझे ये तो बताओं भाई! ये जो ऊचें-ऊचें पदों पर बैठे है जिनके पास पैसा है अब कोई गरीब तो घोटाले कर नहीं सकता है तो ये घोटाले कौन कर रहा है जनता को कौन लूट रहा है टैक्स के नाम पर।
जनता को भूखा कौन मार रहा है मंहगाई करके। जनता को बेरोजगारी की दलदल में कौन घसीट रहा है। ये सब अमीर जादें अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक गरीब का खून कैसे चूसना यह इन्हें अच्छी तरह पता है और ये कर भी रहें है।
तो इनको कौन नर्क भेजेगा। ये इतने रेप बलात्कार रोज अखबार में छपे आ रहे है कौन इन्हें नर्क भेजेगा। मैं जो असलियत अपनी आंखों से देख रहा हूँ जो आजकल हमारे साधु संत है वो ही गलत कार्यों से नहीं रूक रहें है तो एक आम आदमी से तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते है।
अब आशाएं निराशा में बदलने लगी है।
पता नहीं वो कौन सा पथ है।
कौन सी वह जमीन है कौन सी वह मेहनत है। कौन सा वह ज्ञान है। हमने तो देखा है कि जो भी ईमानदारी से चला है वह बुरी मौत मरा है इससे तो अच्छा है कि पहले ही मौता आ जाए और जो लोग नर्क की बात करते है वह तो आदमी अपनी जिंदगी में बहुत देख लेता है। भला इसके आगे और कौन सा नर्क होगा। जहां अच्छे व्यक्ति को कष्ट सहना पड़ रहा है। और बुरे व्यक्ति अपनी मौज में है। गरीब का खून पी रहें है।
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