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जीवन का संघर्ष

 

जीवन का संघर्ष

नमस्कार दोस्तों!

आज आपकों मैं अपने जीवन के उस सच से रू-ब-रू कराने जा रहा हूँ जिसे काफी समय से मैनें किसी को नहीं बताया।

बताने को मन भी नहीं करता है। और जिस तरह की यह कहानी है उस तरह से मन में संकोच पैदा होता है कि अगर किसी को बताउंगा तो पता नहीं मेरे बारें में क्या सोचेगा।

चलों फिर भी आज हिम्मत करके केवल ब्लॉग पर लिखने का दुस्साहस कर पाया हूँ वो भी इसलिए कि शायद लिखने से मेरे मन का थोड़ा बोझ हलका हो जाए। हर माँ-बाप चाहते है कि मेरे बच्चे कामयाब हो। वह अच्छी शिक्षा ग्रहण करें। फिर कही कामयाब हो जाएं। किसी अच्छे घर में शादी हो जाए। ये दो-तीन बातें होती है जो कि हर माँ-बाप को परेशान करती है। मेरा बच्चा कही गलत संगत में न पड़ जाए।

चिंता तो हर किसी को रहती ही है। 

मैं जब दसवीं में था। मेरे पापा ने कहा कि बेटा अब इतने बड़े हो गए हो कि अपना खर्चा खुद उठा सकते हो ऐसा करों कि तुम्हें मैं एक परचून की दुकान करके दे देता हूँ तुम उसी से अपना खर्चा चलाना। नहीं तो बेटा कही दिहाड़ी मजदूरी करलें अब हमसे तुम्हारा खर्चां नही उठाया जाता ये बात तब की जब मैं दसवीं के इम्तहान दे रहा था। ये बातें उन्होंने धमकाकर नहीं कहीं ब्लकि एक नर्म स्वभाव के साथ दोनों माँ-और बाप दोनों ने कहीं। मुझें याद मेरे माता-पिता एक खाट पर बैठे थे। और खाट की पेंदी की तरफ बैठा हुआ था मेरा सर शर्म और घबराहट से झुक गया था। 



जीवन का संघर्ष


घबरा मैं इसलिए रहा था कि मैं अपने माँ-बाप को एक बोझ महसूस हो रहा हूँ। और शर्म इसलिए आ रही थी कि मेरे माँ-बाप ने मुझे 15-16 साल का कर दिया है और अभी तक मैं उनके लिए कुछ नहीं कर सका उनको पैसे कमा नहीं दे सका। बड़ा ही बेबस सा अपने आप को देख रहा था।

वह बात कहकर वह घर में चले गयें और मैं वही पसीने से तर-बतर हुए वहीं बैठा रहा जैसे मेरी समाधी लग गयी हों। मेरी समझ नहीं आ रहा था कि मै क्या करूं। मुझे तो बाजार से सामान लाना भी नहीं आता। ग्राम बाट के हिसाब का नहीं ता कौन बताएगां इन सबके बारें मंे यही सारी रात सोचने में चली गयी। चलों मै दुकान कर भी लेता हूँ तो सामान कहां से लाउगां, ग्राम सामान का हिसाब कैसे निकालूगां। 

ये सभी चिंता मेरे मन को खाएं जा रही थी। मां से भी नहीं कह सकता था क्योंकि माँ-बाप भी पढे़ लिखे नहीं थे। पिताजी रेलवें में सरकारी नौकर थे। पर मैं यही सोचता रहा कि मेेरे माँ-बाप मेरा खर्चा कैसे उठा रहे है। मेरे से छोटे दो भाई है एक बहन है। जो होकर भी ना होने में ही है।

कभी फूटे मुँह से भाई कहकर एक पानी का गिलास भी आज तक नहीं दिया। 

बेटा तुम्हें कोई फ्रिक है किस चिंता मंे तू दिन-रात रहता है। एक बाप ने यह कहकर सिर पर कभी हाथ नहीं फेरा कि बेटा जब तक तेरा बाप जिंदा है तुझे किसी बात की चिंता नहीं होनी चाहिए। कभी माँ ने ये नहीं कहा बेटा अगर भूख लगे तो अपनी माँ से खाना मांग लेना ये भी अधिकार मुझे नहीं था।

मेरे पिताजी ने ये बातें कहकर मुझ से पूछे बगैर ही परचून की दुकान का सामान ले आया। दुकान घर में ही पहले ही बनी हुई थी। मेरे दिमाग में चिंता बढ़ती ही जा रही थी क्योंकि एक तो मुझे सामान का पता नहीं था और दूसरा दसवीं की परीक्षा नजदीक थी एक महीना मुश्किल से होगा। 
अब पढ़ाई करें कि कमाई।

जीवन का संघर्ष
अब मैं एक तरह से दो नावों मंे पैर रख चुका था। एक ओर दुकान का पता नहीं कैसे हिसाब रखना है। मे ही अपने घर में सबसे बड़ा था पिताजी अपनी ड्यूटी करते थे माँ अपना घर के रोटी पानी बनानें में व्यस्त रहती थी।
इस चिंता में मेरे सिर के बाल इतने तेजी से झड़े कि पूछों मत आगें का हिस्से के बाल ऐसे गायब हो गए जैसे किसी बुढापे में सर बीच से गंजापन होता है ना बिल्कुल वैसा गंजापन मेरे माथे के सामने वाले भाग में देखने को मिलता था। 

मैं पहली दसवी की परीक्षा में फेल हो गया था। 
क्योंकि एक दम से संतुलन न होने के कारण सबकुछ गड़ाबड़ा गया।
मेरे जीवन का धरातल पूरा का पूरा हिल गया था।

फिर मैनें अगले साल तक मेहनत की अपनी दुकान में और फिर पढ़ाई के लिए भी समय निकाला तो अगले साल सैकण्ड़ डिविजन से पास हो गया।
और फिर बारहवीं भी मैनें दूसरे स्थान से ही पास की।

फिर मैनें मेरे पिताजी ने साफ-साफ कह दिया कि बेटा अब पढ़ाई छोड़ अपना काम पर ध्यान दें।
फिर भी मेरे अन्दर की तीव्र इच्छा के कारण मैने अपनी दुकान से कुछ पैसे जोड़ रखें थे तो उस कारण मै आगे की पढ़ाई जारी रख सका।


जीवन का संघर्ष
अपनी पढ़ाई को पूरा करने में मुझे बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा।
पढ़ाई पूरी जैसे तैसे मैनें की। उसके बाद घरवालों का प्रेशर था कि बेटा अब आप अपनी शादी करलों। आगें हमें अपने और बच्चों का भी देखना है। ये मान लों कि अपने पूरे परिवार में सबसे बड़ा था। और हर काम में प्रेशर भी मुझ पर ही पडता था। परिवार में किसी ने कोई गलत काम कर दिया तो मिसाल मुझे निसाने पर रखकर दी जाती थी।

अपने जीवन काल में मैने काफी संघर्षों से होकर गुजरा हूँ मैं शहर गया काम मांगने और वहां मै बोलते है कि सारा दिन रहना पडेगा सारा काम साफ-सफाई का करना पड़ेगा और फीस भी देनी पड़ेगी फिर बेटा कुछ काम सीख पायेगा। मैने वह भी किया।

मुझे काम सीखने की जल्दी थी क्योंकि घरवालों का बार-बार प्रेशर आ रहा था कि बेटा शादी करलो, शादी करलों। पिताजी शराब पीते थे और उसी के कारण उन्हें टीबी हो गयी थी। तो पड़ोस वालो का, रिश्तेदारों का सभी कहना था कि बड़ें बेटे की शादी कर दो। जितनी जल्दी हो सके बड़ें बेटे की शादी कर दों। पता नहीं आगे क्या हो जाए। 

दोस्तों अगला भाग मैं फिर लिखूँगा। आज बहुत ही थक गया हूँ। अगला ब्लॉग में जल्दी ही लिखूँगां।
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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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