बनावटी दुनिया से अपने असली जीवन की तुलना
पुराने संगीत इतने खतरनाक होते है।
इनको सुनकर अपने होश खोते है।।
संगीत सुना और करते है इस बनावटी दुनिया से अपने असली जीवन की तुलना।।
बोल अगर सुनोगे ना इन गीतों के।
पर धुन इतनी प्यारी लगाते है कि बोलों और शब्दों पर तो ध्यान नहीं जाता है इतनी अश्लीलता इन्होंने समाज फैलायी कौन कहता है।
छोटे बच्चें सुनकर बडे़ होते है।
इनको सुनकर बच्चे अवारा होते है।।
भगवान को भूलकर अपने प्यार का इजहार करते है।
कहते है यही सबकुछ है बाकी तो धोखा देते है।।
इतनी फिल्में बनती अश्लीलता इन में कूट के भरी है।
कहते है यही तो आज की दुनिया है जो फैशन से भरी है।।
पहले स्त्री तन ढककर रखती थी।
दूर से देखो तो देवी से मालूम पड़ती थी।।
आज देखकर एक काला चित्र मनस में छप जाता है।
अकेली स्त्री को देखकर वही फिल्म वाली सीन याद आता है।।
फिर भी कहते हो इन फिल्मों को देखनेमें कोई बुराई नहीं है।
आप समाज को इतने पतन में देखकर भी इन फिल्मों को तवज्जो देते रहते हों।
कहां से आती यह फिल्मी मसाला।
समाज से लेकर समाज को देते है यह आला।।
अपने सुरों को ऐसे ढालते है।
गरीबी को मजाक और गरीब को बेवकूफ मानते है।।
इतने सालों से लोग अपनी मेहनत की कमाई इन फिल्मों को देखने में बर्बाद कर रहे है।
अपने बीवी बच्चों का निवाला छीन रहें है।
अब भी कहते हो इनको देखने में कोई बुराई नहीं है।
क्या जनता जागती हुई भी सो रही है।।
अपने समाज को बचालों।
याद रखना कितनी ही नजर दौड़ालों।
ये फिल्मों वाले अपने को बड़ा ही चतुर समझदार मानते है।
और हम पागल है जो इनके पागलपन को तवज्जों देते है।।
इनका भोलापन फिल्मों में जो दिखाई देता है।
यही करेक्टर हमारें समाज से ही चुराई लेता है।।
एक लेखक होना गुनाह नहीं पर तन को ढक दे समाज को सीख दे फिल्मों को करों।
जो समाज को अच्छी शिक्षा दे अपने को खुशी से भरें ऐसी फिल्मों को इस समाज में स्थान दों।।
अपनों के बीच बैठकर बेगानें हो जाते है।
अरें! ये फिल्मों वालों कितनी बेशर्मी दिखाते है।।
कहते है समाज आगें बढेगा।
जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा।।
आप क्या बो रहो हो।
समाज को कहां पहुँचा रहें हो।।
अपने को देखों जरा।
क्यों इस पैसे के लिए जहर भरा।।
आज नौजवान भौखला जाता है।
इस मस्तिष्क आगें कहाँ सोच पाता है।।
उसकी सोच को इतना छोटा कर दिया।।
बस हर जगह आयुर्वद धारी वेद कहते है उस दवा को खाकर उसका अंग मोटा कर दिया।।
जहां तहां यह पोस्टर मिल जाता है।
जब बचपन से ही यही देखने को मिलता है फिर अपने को कौन रोक पाता है।।
रसगुल्ला मुंह में रखकर कहते है कि बेटा इसका स्वाद मत चखना।
फिर अगर वह छोटी सी भूल कर देते है तो कहते है दिया है घर वालों को धोखा।।
इन फिल्मों की नग्नता को देखकर करते है अपने अंग को परेशान।
शरीर की कमजोरी और झूठे आकर्षण को कहते है अपने प्यार की शान।।
सिलसिला कुछ इस तरह शुरू होता है प्यार का।
कहां किस डगर पर खत्म होगा यह बेवफा प्यार का।।
इस भीतरी शान को खत्म करों।
झूठे मान को अपनाना बंद करों।।
अपनी सच्ची सूरत को पहचानों ।
दो घड़ी रूको फिर देखों अपनी चिड़ियां जापानी।।
किस तरह उड़ती है यह प्यार की मारी।
इसे कहते है अपनी जान जो रहती है हजारों साल से इस पिजड़ें में पड़ी बेकारी।।
इसकों जानने की कोशिश करों।
फिर कौन कहता है किसे अपना बनाने की कोशिश करो।।
अपना फिर बन जाएगा।
हर आदमी आपके काम आएगा।
आपका कहना मानेगा।
जो अपने को फिर एक जानेगा।
यही है दोस्तों आज के ब्लाग की सीख।
इंसान से नही भगवान से ही मांगनी चाहिए भीख।।
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