आज के युग में बेरोजगारी का स्तर |
आज के युग में बेरोजगारी का स्तर
आज सुबह जब मैं काम के लिए जा रहा तो मेंरी नजर उस भीड़ पर पड़ी जो एक मोटर साइकिल वाले के इर्द-गिर्द इक्टठा हो रही थी। बार-बार वह एक दूसरे की बांह पकड़कर खींच रहे थे। साहब! मुझे ले चलों, साहब मुझे ले चलों।
यह सब देखकर मेरे मन में अनेकों विचार आ रहें थे। कभी में अपनी सरकार को कोसता तो कभी अपने शिक्षा देने वाले टीचर को। और कभी-कभी तो मरने को मन करता था। अनेकों विचार घर कर गए। यह नजारा देखकर।
उनमें से कुछ छोटी सी छलकियां मैं आपकें साथ शेयर करना चाहता हूॅ।
मान लीजिए आपको सब्जी खरीदनी है तो आपको अपनी जेब देखकर दस बार सोचना पड़ेगा क्योंकि मंहगाई ही इतनी ज्यादा हो गयी है कि आप कुछ खरीदने के बारें में सोच ही नहीं सकते। बेरोजगारी इस कदर फैली है जैसे कोई महामारी हो जाए। आजकल केवल वही कामयाब है जिसके हाथ में कुछ कलाकारी है और उसी के दम पर वह कुछ आय अर्जित करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकता है।
आज का अध्यापक और स्टूडेंट
अध्यापक सोचता है कि किसी प्रकार आज का दिन कट जाए। स्टूडेंट सोचता है कि मैं किसी तरह बस पास हो जाउ और मेरे पास डिगी्र या सर्टिफिकेट आ जाए जिससे दिखाकर में नौकरीं पर लग जाउ।
नौकरी देने वाला सोचता है कि बस एक दो साल का कांन्ट्रेट देकर किसी से जल्दी से काम करा लूॅ।
और कोई ऐसा कार्य कुशल व्यक्ति मिल जाएं जो जल्दी से कम खर्च पर मेरा यह कार्य कर के मुझे दे दे।
अब आप देखिए किस को नौकरी मिलेगी या किस का काम होगा। ये सब उधेड बुन किस काम की।
अब का सब बटटा धार हो चुका है।
जो अध्यापक के पद पर कॉलेज में नौकरी कर रहा है, उसकों भी इतनी नॉलेज नहीं है। कि वह स्टूडेंट के भविष्य के बारें में सोच सकें।
आइए अब कुछ पढ़ाई की बातें करते है।
आज के युवा को नहीं पता कि वह पढ़ाई क्यों कर रहा है वह सब्जेक्ट जो वह पढ़ रहा है उसने क्यों चुना है। और आगे जाकर किस फिल्ड में कार्य करने वाला है। आज के पेरेन्टस को नहीं पता कि उसका बच्चा क्या करना चाहता है। बस कही से पैसे की बारिश हो जाए और हमारा लाड़ला कही किसी फैक्ट्री में या फिर किसी सरकारी पद पर किसी प्रकार से एक बार फिट हो जाए। फिर तो सब बल्ले-बल्ले हो जाएगी।
प्रत्येक व्यक्ति परेशान है इस बेरोजगारी की मार से
खासकर भारत देश में क्यांेकि में इसी देश का वासी हूॅ तो मैं तो इसी के बारें में बात करूगां। हर व्यक्ति इस बेरोजगारी की मार से परेशान है। लोग कहते है कि आज का युवा कार्य नहीं करना चाहता है। क्या किसी ने उससे पूछा है कि भाई अगर कोई मुझे चपरासी की नौकरी ही दे देता तो मैं तो उसी से खुशी से कर लेता। अफसर तो क्या बनिएगा। हर तरफ बेरोजगारी की त्राहि-त्राहि मची हुई है। बच्चा पढ़ता है कि उसे कही पैरों पर खड़ें होने की जगह मिलेगी पर जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है उसे पता चलता है कि जिसके लिए वह रात-दिन आंखे फोड़ रहा है वह उसको एक दिन अंधा ही कर देगी।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for sending message