नवरात्र का पर्व।
इन दिनों गोगामेहड़ी का कार्यक्रम भी चल रहा है अर्थात् मेला भी भर रहा है और कनागत भी लग रहे है। कनागत खत्म होते ही नवरात्र शुरू हो जाते है। इन दिनों में खासकर भारत के लोग बहुत ही श्रद्धा भक्ति के साथ इन त्यौहारों को मनाते है। इन दिनों में कोई मांस मछली का सेवन नहीं किया जाता है। केवल शाकाहार की प्रत्येक घर में बनता है वास्तव में शाकाहार ही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। शाकाहार से मानव देह स्वस्थ रहती है। इसमें कोई रोग जल्दी नही पनप पाता है।
नवरात्र क्यों मनाते है
नवरात्र की अगर बात करें तो यह केवल शारीरिक तौर पर ही नहीं आध्यात्मिक तौर पर भी बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। यह हमारी मानसिक शक्ति बढ़ाने के साथ-साथ हमारी आध्यात्मिक शक्ति को भी बढ़ाने में मदद करती है। नवरात्र त्यौहार नहीं है एक ऐसा समय है जिसमें ऊर्जा का प्रभाव अपने चर्म पर होता है इन दिनों में अगर हम शुद्ध होकर अपने भक्ति व श्रद्धा भाव से ध्यान करें तो अन्य दिनों की अपेक्षा ध्यान बहुत ही तेजी से
घटित होता है। यह बातें हमारे ऋषि-मुनि जानते थे इसी कारण वह इन दिनों अन्न व जल का त्याग कर दिया करते थे। अब तो फल भी खा लेते है। वास्तव में इस की महत्ता के बारें में सम्पूर्ण जानकारी किसी के पास नहीं है और साधारण मनुष्य तो इसके बारें में बिल्कुल भी नहीं जानता है। ये आध्यात्मिक ज्ञान दिनों दिन लुप्त होता जा रहा है।
इस समाज में काली माता के अनेक रूप।
जिस समाज में हम रह रहें है उस समाज में माता के अनेक रूपों की महत्ता सुनने को मिलेगीं एक बात में आज आपको बताता चलूं कि हम जिस देवी की पूजा करते है जिसे काली माता मानते है वह विश्वरूपा है। विश्वरूपा जगजननी माता। पर जिस माता के हम कारनामें इस समाज में सुनते है उस माता का तो आज तक मुझे पता ही नहीं चला कि वह कौन है। और इतना चढ़ापा क्यांे मांगती फिरती है। यह एक घर की बात नहीं है प्रत्येक घर में एक काली और एक प्रेत का साया जरूर होता है अगर आपकों पता नहीं है तो किसी साधु, गुरू, भक्त, या किसी पुछा देने वाले के पास चले जाओं आपको बता देगा। कि काली माता आपसे कितनी नाराज है अगर आपके घर से दुःख जाने का नाम ही नहीं ले रहे है तो फिर उसके पीछे किसी काली माता का हाथ है। चाहे घर में कोई काम करने के लिए हाथ भी ना हिलाता हो। यह है इस समाज की सच्चाई।
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