ईश्वर को प्राप्त
करने का साधन क्या है?
लोग
कहते है कि आंखे बंद कर लों ईश्वर को देख लो। पर यह बात एक सामान्य मनुष्य के लिए
आसान नहीं है पर जो त्याग तपस्या करते है वह इसे आसानी समझ सकते है बल्कि उनके लिए
तो यह सब खेल होता है।
लोग कहते है पहले मन साफ करों फिर भगवान मिलेंगें। इसका
क्या अर्थ होता है?
मैं बचपन में काफी इस तरह के सवालों से होकर गुजरा हूँ
पर वास्तव में इसका अर्थ क्या होता है इसी के बारें में आपको विस्तार से बताउगां।
पहली बात तो आप यह जान लो कि लोग किसी व्यक्ति की पूरी
बातें सुनते नहीं अगर सुनतें है तो उसका अर्थ जानने की कोशिश नहीं करते है।
कोई व्यक्ति किसी को सीधे-सीधे ज्ञान थोड़े दे देगा। पर
ये सही भी है कही ना कही। अब जानिए क्यों है सही क्योंकि अगर किसी अपात्र के हाथ
यह ज्ञान लग गया तो फिर यह ज्ञान नहीं अज्ञान होगा। और अज्ञान के कारण ही समाज में
बुराई फैलती है।
अब बात करते है कि मन को साफ करने का अर्थ क्या होता है
असल में मन को साफ करने से अर्थ होता है बहत्तर हजार नाड़ियों से होता है जो कि
हमारे सूक्ष्म शरीर में होती है,
और यह प्रक्रिया प्राणायाम
से जुड़ी हुई है। दूसरा जब हम प्राणायाम करते है तो हमारी नाड़ियां साफ होने लगती
है। इसका असर हमारे भौतिक शरीर पर भी देखने को मिलता है। एक चमक जो हमारे पर आ
जाती है वह देखते ही बनती है।
अब प्राणायाम के कितने फायदे होते है हमारे लिए यह तो
बताने की जरूरत नहीं है। और अगर हम इस प्राणायाम को 3 से 6 महीने तक लगातार कर
लेते है तो हमारी चक्र साफ होने लगते है वे एक्टिव होने लगते है हमें इतनी ऊर्जा
प्राप्त हो जाती है कि हमारी सिद्धि हो जाती है।
भगवान
आखिर है कहां ये तो बताइए ?
देखिए!
ये सवाल इतना विशाल है कि बहुत मुश्किल है इसका जवाब देना। फिर भी ईश्वर की कृपा
से मैं आपको समझाने की कोशिश करता हूँ।
सबसे पहले तो ये समझिए कि जब चांद, तारें, सूरज, पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह सह सब नहीं थे तो क्या था। ये पांच तत्व अग्नि, जल.... नहीं थे तब क्या था। अगर इस पूरे ब्रहमाण्ड़ को नष्ट कर दिया जाए तो क्या बचेगा।
जो बचेगा वही सदा
से था वहीं रहेगा। वो था सन्नाटा जैसा कि आप अगर श्मशान में गए हो तो आपको वहां
देखने को मिल सकता है। यह हर जगह है। ये सं सं इसी से मिलकर बना संसार सं का सार
इसे ही कहते है संसार।
ये
सं सं की ध्वनि ही ईश्वर है। इसे ही ईश्वर कहते है।
अब आगे इसी की व्याख्या है इसे कम करलो या ज्यादा इसी
को प्राप्त
करने के साधन है। यह इसका शुद्ध रूप है। बाकी अगर
आप इसे मानव रूप में देखना चाहते है। इसे राम, कृष्ण के रूप मे देख सकते है। ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जाएगे।
तो मित्रों धन्यवाद अगले किसी प्रश्न का जवाब फिर से अगले ब्लाग में जरूर मिलते है।
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