सोने के निर्माण की पुरानी विधि, जिसे "स्वर्ण निष्कर्षण" या "सोना बनाने" के रूप में भी जाना जाता है, में निम्नलिखित चरण शामिल होते थे:
खनन (Mining):
पहले सोने के अयस्क (गोल्ड ओरे) को जमीन से खोदा जाता था। इसके लिए खदानों का उपयोग किया जाता था।
खदानों से अयस्क को निकालकर प्रसंस्करण के लिए लाया जाता था।
कुचलना (Crushing):
खदान से निकाले गए अयस्क को छोटे-छोटे टुकड़ों में कुचल दिया जाता था।
इसके लिए बड़ी-बड़ी मशीनों या हाथों से पत्थरों को तोड़ा जाता था।
पीसना (Grinding):
कुचले गए अयस्क को और भी छोटे टुकड़ों में पीस दिया जाता था ताकि उसमें से सोने को अलग करना आसान हो जाए।
पीसने के लिए बड़े-बड़े मिलों का उपयोग किया जाता था।
सांद्रण (Concentration):
पीसे हुए अयस्क में से सोने को अलग करने के लिए गुरुत्वाकर्षण विधि (gravity method) का उपयोग किया जाता था।
इसके लिए पानी का उपयोग करके अयस्क को धोया जाता था, जिससे भारी सोना नीचे बैठ जाता था और हल्का मलबा बह जाता था।
अमलगमेशन (Amalgamation):
इस विधि में पारे (Mercury) का उपयोग किया जाता था। पारा सोने के साथ मिलकर एक अमलगम बनाता था।
अमलगम को फिर गर्म किया जाता था जिससे पारा उड़ जाता था और पीछे शुद्ध सोना रह जाता था।
साइनाइड प्रक्रिया (Cyanide Process):
यह विधि 19वीं सदी के अंत में विकसित हुई। इसमें सोने के अयस्क को साइनाइड (Cyanide) के घोल में घोला जाता था।
इस प्रक्रिया से सोना घोल में घुल जाता था और फिर जस्ता (Zinc) के उपयोग से उसे पुनः प्राप्त किया जाता था।
अंतिम शुद्धिकरण (Final Purification):
प्राप्त सोने को फिर से पिघलाकर और अन्य धातुओं से अलग कर शुद्ध सोना प्राप्त किया जाता था।
इस चरण में सोने को शुद्ध करने के लिए विभिन्न रासायनिक और भौतिक विधियों का उपयोग किया जाता था।
कपेला प्रक्रिया (Cupellation Process):
यह एक प्राचीन विधि है जिसमें सीसे (Lead) का उपयोग किया जाता था। सोने और चांदी के अयस्क को सीसे के साथ गर्म किया जाता था।
उच्च तापमान पर सीसा ऑक्सीकृत होकर सीसा ऑक्साइड (Litharge) में बदल जाता था, जो अन्य अशुद्धियों को सोख लेता था और शुद्ध सोना पीछे रह जाता था।
स्मेल्टिंग (Smelting):
इसमें सोने के अयस्क को उच्च तापमान पर भट्टी (Furnace) में पिघलाया जाता था। इसके साथ फ्लक्स (Flux) मिलाया जाता था, जो अयस्क में मौजूद अशुद्धियों को अलग करता था।
यह प्रक्रिया धातु विज्ञान (Metallurgy) की एक महत्वपूर्ण विधि थी, जिससे सोना और अन्य धातुएं शुद्ध की जाती थीं।
फायर रिफाइनिंग (Fire Refining):
इसमें सोने को पिघलाकर और विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अशुद्धियों को जलाया जाता था।
इस विधि में सोने को उच्च तापमान पर लंबे समय तक रखा जाता था ताकि उसमें मौजूद अशुद्धियाँ पूरी तरह से निकल जाएं।
एल्केमी (Alchemy):
प्राचीन समय में रसायन विज्ञान (Chemistry) के प्रारंभिक रूप में, अलकेमिस्ट (Alchemists) सोने के निर्माण की विधियों को खोजने की कोशिश करते थे।
हालांकि, अल्केमी की प्रक्रियाएँ अधिकतर असफल रहती थीं, लेकिन इसने आधुनिक रसायन विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
दस्तकारी और प्रारंभिक प्रयोग (Manual and Early Experimental Methods):
पुराने समय में सोने को खोजने और निकालने के लिए कई दस्तकारी विधियों का उपयोग किया जाता था। जैसे कि सोने के कणों को नदियों के किनारे से हाथों से धोकर अलग करना।
इन विधियों में साधारण उपकरणों का उपयोग होता था, जैसे कि पैनिंग, जिसमें सोने के कणों को पानी में धोकर अलग किया जाता था।
फ्लोटेशन प्रक्रिया (Flotation Process):
इस प्रक्रिया में सोने के अयस्क को छोटे-छोटे टुकड़ों में पीसकर पानी और रसायनों के साथ मिलाया जाता है।
रसायनों का उपयोग करके सोने के कणों को हवा के बुलबुलों के साथ जोड़ा जाता है, जिससे सोने के कण पानी की सतह पर तैरने लगते हैं।
इसके बाद इन कणों को एकत्रित किया जाता है और पानी से अलग कर लिया जाता है।
ग्रेविटी सप्रेशन (Gravity Separation):
इसमें सोने के भारीपन का उपयोग करके उसे अलग किया जाता है।
पैनिंग, स्लुइसिंग (Sluicing), और जिग्गिंग (Jigging) जैसी विधियाँ इस प्रक्रिया में शामिल होती हैं।
सोने के कणों को गुरुत्वाकर्षण बल के माध्यम से मिट्टी, रेत, और अन्य मलबे से अलग किया जाता है।
हीप लीचिंग (Heap Leaching):
यह एक आधुनिक विधि है जिसमें सोने के अयस्क के ढेरों को एक बड़ी प्लेटफॉर्म पर रखा जाता है और उस पर साइनाइड का घोल छिड़का जाता है।
साइनाइड सोने को घोल में बदल देता है, जो प्लेटफॉर्म के नीचे एकत्र होता है।
इस घोल से फिर सोना अलग किया जाता है।
बायोलॉजिकल विधियाँ (Biological Methods):
कुछ विशेष बैक्टीरिया का उपयोग करके सोने के अयस्क से सोने को निकाला जाता है। इन बैक्टीरिया की विशेषता होती है कि वे सोने के कणों को घोल में बदल देते हैं।
इस विधि को बायोलॉजिकल लीचिंग या बायोलिक्स विधि कहा जाता है।
इलेक्ट्रोलिसिस (Electrolysis):
इसमें सोने के यौगिकों को एक इलेक्ट्रोलाइटिक सेल में विद्युत प्रवाह के माध्यम से शुद्ध सोने में बदला जाता है।
इस प्रक्रिया में, सोने के अयस्क को एक समाधान में घोला जाता है और फिर विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, जिससे शुद्ध सोना इलेक्ट्रोड पर जमा हो जाता है।
फायर असयिंग (Fire Assaying):
यह एक विश्लेषणात्मक विधि है जिसका उपयोग सोने की शुद्धता और मात्रा को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
अयस्क को उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है और विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से उसकी शुद्धता को मापा जाता है।
वाष्पीकरण (Vaporization):
कुछ अयस्कों में सोने को वाष्पीकृत करके प्राप्त किया जा सकता है।
इसमें अयस्क को इतनी ऊँची तापमान पर गर्म किया जाता है कि सोना वाष्पीकृत हो जाए और फिर उसे एक ठंडी सतह पर जमा करके एकत्र किया जाता है।
क्लोरिनेशन (Chlorination):
इस विधि में सोने के अयस्क को क्लोरीन गैस के साथ प्रतिक्रिया कराई जाती है। इससे सोने के यौगिक बनते हैं जो पानी में घुल जाते हैं।
इसके बाद इस घोल से सोना अलग किया जाता है।
कार्बन-इन-पल्प (CIP) और कार्बन-इन-लीच (CIL) प्रक्रिया:
ये आधुनिक विधियाँ हैं जिनमें अयस्क को पीसकर साइनाइड घोल में मिलाया जाता है और फिर उसमें सक्रिय कार्बन मिलाया जाता है।
सोने के कण कार्बन के कणों से चिपक जाते हैं और बाद में इस कार्बन को अलग करके सोना प्राप्त किया जाता है।
आयनीकरण (Ion Exchange):
इस प्रक्रिया में आयन एक्सचेंज रेज़िन का उपयोग करके सोने के आयनों को एक घोल से अलग किया जाता है।
यह विधि सोने की शुद्धि बढ़ाने के लिए उपयोगी है।
कैल्सिनेशन (Calcination):
इसमें सोने के अयस्क को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है ताकि उसमें से वाष्पशील पदार्थ हट जाएं।
इस प्रक्रिया से अयस्क की शुद्धता बढ़ती है और बाद की प्रक्रियाओं के लिए उसे तैयार किया जाता है।
सोलेशन और रीक्रिस्टलाइजेशन (Solution and Recrystallization):
सोने के यौगिकों को एक उपयुक्त सॉल्वेंट में घोला जाता है और फिर उसे पुनः क्रिस्टलाइज किया जाता है ताकि शुद्ध सोने के क्रिस्टल प्राप्त हो सकें।
यह प्रक्रिया सोने की उच्च शुद्धता प्राप्त करने के लिए उपयोगी है।
फ्राक्शनल क्रिस्टलाइजेशन (Fractional Crystallization):
इसमें सोने के अयस्क को पिघलाकर धीरे-धीरे ठंडा किया जाता है।
इससे सोने के क्रिस्टल पहले जम जाते हैं और अन्य धातुएं बाद में, जिससे उन्हें अलग करना आसान हो जाता है।
थियोसल्फेट लीचिंग (Thiosulfate Leaching):
यह साइनाइड के विकल्प के रूप में उपयोग की जाने वाली एक पर्यावरण-सुरक्षित विधि है।
इसमें सोने के अयस्क को थायोसल्फेट के घोल में घोलकर सोने को अलग किया जाता है।
इलेक्ट्रॉन बीम मेल्टिंग (Electron Beam Melting):
इसमें सोने के अयस्क को इलेक्ट्रॉन बीम से पिघलाया जाता है।
यह विधि उच्च शुद्धता वाले सोने के उत्पादन के लिए उपयोग की जाती है।
इंडक्शन मेल्टिंग (Induction Melting):
इसमें सोने के अयस्क को इंडक्शन फर्नेस में पिघलाया जाता है।
यह विधि तेज और कुशल है, और सोने की उच्च शुद्धता सुनिश्चित करती है।
फाइर रिफाइनिंग (Fire Refining):
इस विधि में, सोने के अयस्क को उच्च तापमान पर भट्टी में पिघलाया जाता है और विभिन्न फ्लक्स मिलाकर अशुद्धियों को अलग किया जाता है।
शुद्ध सोने को ठंडा करके सिल्लियों (Ingots) के रूप में ढाला जाता है।
गोल्ड पैनिंग (Gold Panning):
यह सबसे पुरानी और सरल विधियों में से एक है, जिसमें एक बड़े कटोरे या पैन का उपयोग किया जाता है।
अयस्क को पानी में डालकर धीरे-धीरे घुमाया जाता है, जिससे भारी सोने के कण तल में बैठ जाते हैं और हल्का मलबा बह जाता है।
हाइड्रोमेटलर्जिकल प्रोसेसिंग (Hydrometallurgical Processing):
इसमें सोने के अयस्क को रासायनिक घोलों में मिलाकर धातु को घोल में बदल दिया जाता है।
इसके बाद, धातु को विभिन्न रासायनिक विधियों द्वारा पुनः प्राप्त किया जाता है।
क्लोरिनेशन प्रोसेस (Chlorination Process):
यह विधि 19वीं सदी में काफी लोकप्रिय थी।
इसमें सोने के अयस्क को क्लोरीन गैस के संपर्क में लाया जाता था, जिससे सोने का क्लोराइड बनता था, जिसे बाद में शुद्ध सोने में परिवर्तित किया जाता था।
लाइम लेचिंग (Lime Leaching):
इसमें चूना पत्थर का उपयोग करके सोने के अयस्क को घोला जाता है।
यह विधि खासतौर पर सायनाइड प्रक्रिया के विकल्प के रूप में उपयोग की जाती है।
माइक्रोबियल लीचिंग (Microbial Leaching):
इस प्रक्रिया में, विशेष प्रकार के बैक्टीरिया का उपयोग करके सोने को अयस्क से अलग किया जाता है।
बैक्टीरिया धातु के यौगिकों को घोल में परिवर्तित करते हैं, जिससे धातु को आसानी से पुनः प्राप्त किया जा सकता है।
हाइड्रोफ्लोरिक एसिड लीचिंग (Hydrofluoric Acid Leaching):
यह एक विशेष विधि है जिसमें हाइड्रोफ्लोरिक एसिड का उपयोग करके सोने को अयस्क से अलग किया जाता है।
यह विधि उच्च दक्षता वाली होती है लेकिन सावधानीपूर्वक संचालन की आवश्यकता होती है।
इलेक्ट्रोलिटिक रिफाइनिंग (Electrolytic Refining):
इसमें सोने को इलेक्ट्रोलाइटिक सेल में रखा जाता है, और विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
यह प्रक्रिया सोने की उच्चतम शुद्धता सुनिश्चित करती है।
ऑक्सीडेशन प्रोसेस (Oxidation Process):
इसमें अयस्क को उच्च तापमान पर ऑक्सीजन के संपर्क में लाया जाता है, जिससे अशुद्धियों का ऑक्सीडेशन हो जाता है।
इसके बाद, शुद्ध सोना प्राप्त किया जाता है।
रेडियोमेट्रिक सॉर्टिंग (Radiometric Sorting):
यह एक आधुनिक तकनीक है जिसमें अयस्क की रेडियोमेट्रिक विशेषताओं के आधार पर सोने को अलग किया जाता है।
यह विधि अधिक कुशल और तेजी से निष्कर्षण में सहायक होती है।
बायोहाइड्रोमेटलर्जी (Biohydrometallurgy):
इस विधि में, सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके सोने के अयस्क को घोला जाता है।
सूक्ष्मजीव सोने के यौगिकों को तोड़कर घोल में परिवर्तित करते हैं, जिससे धातु को आसानी से अलग किया जा सकता है।
थर्मल रिडक्शन (Thermal Reduction):
इस प्रक्रिया में, सोने के अयस्क को रिड्यूसिंग एजेंट के साथ उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है।
रिड्यूसिंग एजेंट ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके अशुद्धियों को हटाता है, जिससे शुद्ध सोना प्राप्त होता है।
प्रेशर ऑक्सीडेशन (Pressure Oxidation):
इसमें सोने के अयस्क को उच्च तापमान और दबाव पर ऑक्सीजन के संपर्क में रखा जाता है।
इस प्रक्रिया से सल्फाइड अयस्कों से सोने को निकालना आसान हो जाता है।
वल्कन क्लोरिनेशन (Vulcan Chlorination):
यह एक पुरानी विधि है जिसमें सोने के अयस्क को क्लोरीन गैस के साथ मिलाया जाता है और गर्म किया जाता है।
इससे सोने का क्लोराइड बनता है, जिसे शुद्ध सोने में बदला जा सकता है।
रिड्यूसिंग एजेंट्स के साथ रिफाइनिंग (Refining with Reducing Agents):
इस विधि में, सोने के अयस्क को रिड्यूसिंग एजेंट्स के साथ गर्म किया जाता है।
रिड्यूसिंग एजेंट्स जैसे कि कोक (Coke) या चारकोल (Charcoal) का उपयोग किया जाता है, जो ऑक्सीजन को हटाकर शुद्ध सोना प्राप्त करने में मदद करते हैं।
माइक्रोवेव रिफाइनिंग (Microwave Refining):
इसमें सोने के अयस्क को माइक्रोवेव ऊर्जा का उपयोग करके पिघलाया जाता है।
यह एक आधुनिक और कुशल विधि है, जो तेजी से निष्कर्षण और शुद्धिकरण में सहायक होती है।
बायोऑक्सीडेशन (Biooxidation):
इसमें विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके अयस्क को ऑक्सीडाइज़ किया जाता है।
यह विधि सल्फाइड अयस्कों से सोने को अलग करने में विशेष रूप से उपयोगी होती है।
प्रीट्रीटमेंट प्रोसेस (Pretreatment Process):
इसमें सोने के अयस्क को विभिन्न रासायनिक और भौतिक प्रक्रियाओं से पूर्व-उपचारित किया जाता है।
प्रीट्रीटमेंट अयस्क की संरचना को बदलकर निष्कर्षण की दक्षता को बढ़ाता है।
प्लाज्मा रिफाइनिंग (Plasma Refining):
इसमें उच्च तापमान वाले प्लाज्मा का उपयोग करके सोने के अयस्क को पिघलाया और शुद्ध किया जाता है।
यह विधि बहुत उच्च शुद्धता प्राप्त करने में सक्षम होती है।
मैग्नेटिक सेपरेशन (Magnetic Separation):
इसमें अयस्क को चुंबकीय क्षेत्र में डालकर सोने के कणों को अलग किया जाता है।
हालांकि सोना स्वाभाविक रूप से चुंबकीय नहीं होता, लेकिन इस विधि का उपयोग सहायक धातुओं के निष्कर्षण में किया जा सकता है।
एड्सॉर्प्शन (Adsorption):
इस विधि में, सोने के अयस्क को एक रसायनिक माध्यम से गुजारा जाता है जो सोने के कणों को सोख लेता है।
बाद में सोखने वाले माध्यम से सोना पुनः प्राप्त किया जाता है।
एल्केमिकल प्रक्रियाएँ (Alchemical Processes):
प्राचीन काल में, अल्केमिस्ट विभिन्न रासायनिक और धातु विज्ञान प्रक्रियाओं का उपयोग करके साधारण धातुओं को सोने में बदलने का प्रयास करते थे।
यद्यपि यह वैज्ञानिक रूप से संभव नहीं था, इन प्रयासों ने आधुनिक रसायन विज्ञान के विकास में योगदान दिया।
फ्लूड बेड रिएक्टर (Fluid Bed Reactor):
इसमें सोने के अयस्क को एक फ्लूडाइज्ड बेड में डाला जाता है, जहां यह एक रसायनिक प्रतिक्रिया से गुजरता है।
यह विधि उच्च दक्षता वाली और लगातार प्रक्रिया है।
दबाव क्षारीकरण (Pressure Alkaline Leaching):
इस विधि में सोने के अयस्क को उच्च दबाव और तापमान पर क्षारीय (Alkaline) समाधान में घोला जाता है।
यह प्रक्रिया सल्फाइड अयस्कों से सोने को निकालने में विशेष रूप से प्रभावी होती है।
रेडॉक्स रिएक्शन (Redox Reaction):
इसमें ऑक्सीडेशन-रिडक्शन प्रतिक्रियाओं का उपयोग करके सोने के अयस्क से धातु को अलग किया जाता है।
रिडक्शन एजेंट के रूप में विभिन्न रसायनों का उपयोग किया जाता है ताकि सोने को शुद्ध किया जा सके।
अल्ट्रासोनिक असिस्टेड एक्सट्रैक्शन (Ultrasonic Assisted Extraction):
इस विधि में सोने के अयस्क को अल्ट्रासोनिक तरंगों के साथ उपचारित किया जाता है।
अल्ट्रासोनिक तरंगें अयस्क के कणों को तोड़कर सोने के निष्कर्षण को अधिक कुशल बनाती हैं।
ऑटो-क्लेव प्रोसेसिंग (Autoclave Processing):
इसमें अयस्क को उच्च दबाव और तापमान में ऑटो-क्लेव में रखा जाता है।
यह विधि सल्फाइड अयस्कों से सोने को निकालने के लिए उपयोगी होती है और साइनाइड के उपयोग को कम करती है।
फ्लैश स्मेल्टिंग (Flash Smelting):
इसमें अयस्क को तेजी से उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है।
यह विधि धातु को जल्दी और कुशलता से शुद्ध करने में सहायक होती है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन (Solvent Extraction):
इसमें सोने के अयस्क को विशेष सॉल्वेंट्स में घोलकर धातु को अलग किया जाता है।
यह विधि उच्च शुद्धता वाले सोने के निष्कर्षण के लिए उपयोगी होती है।
रोटरी किल्न प्रोसेस (Rotary Kiln Process):
इसमें अयस्क को एक घूर्णनशील भट्टी में डाला जाता है, जहां यह उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है।
यह विधि बड़े पैमाने पर सोने के निष्कर्षण के लिए उपयुक्त होती है।
कोरबोनेशन प्रोसेस (Carbonation Process):
इस विधि में सोने के अयस्क को कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में लाया जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड सोने के यौगिकों को घोल में परिवर्तित करता है, जिससे सोना अलग किया जा सकता है।
इलेक्ट्रॉन बीम टेकनीक (Electron Beam Technique):
इसमें सोने के अयस्क को इलेक्ट्रॉन बीम के साथ पिघलाया जाता है।
यह विधि उच्च शुद्धता वाले सोने के उत्पादन के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती है।
थर्मल डीकंपोजिशन (Thermal Decomposition):
इसमें सोने के यौगिकों को उच्च तापमान पर तोड़ा जाता है।
यह विधि सोने की शुद्धता बढ़ाने के लिए उपयोगी होती है।
सुपरक्रिटिकल फ्लुइड एक्सट्रैक्शन (Supercritical Fluid Extraction):
इसमें सोने के अयस्क को सुपरक्रिटिकल फ्लुइड के साथ घोला जाता है।
सुपरक्रिटिकल फ्लुइड्स उच्च घुलनशीलता प्रदान करते हैं, जिससे सोना अधिक कुशलता से अलग किया जा सकता है।
इलेक्ट्रोस्टेटिक सेपरेशन (Electrostatic Separation):
इसमें सोने के अयस्क को इलेक्ट्रोस्टेटिक फील्ड के माध्यम से अलग किया जाता है।
यह विधि धातु के कणों को अन्य अशुद्धियों से अलग करने में सहायक होती है।
क्लोरीन लीचिंग (Chlorine Leaching):
इसमें सोने के अयस्क को क्लोरीन के घोल में घोला जाता है।
यह विधि सोने के यौगिकों को घोल में परिवर्तित करके उन्हें अलग करने में मदद करती है।
फ्लुइड डाइनेमिक सेपरेशन (Fluid Dynamic Separation):
इसमें सोने के अयस्क को द्रव गतिशीलता के सिद्धांतों का उपयोग करके अलग किया जाता है।
यह विधि विशेष रूप से कण आकार और घनत्व के आधार पर सोने को अलग करने में प्रभावी होती है।
इलेक्ट्रोफ्लोटेशन (Electroflotation):
इसमें सोने के अयस्क को विद्युत धारा के साथ फ्लोटेशन टैंक में मिलाया जाता है।
विद्युत धारा बुलबुले उत्पन्न करती है, जो सोने के कणों को सतह पर लाकर अलग करती है।
कॉन्टिन्युअस कास्टिंग (Continuous Casting):
इसमें पिघले हुए सोने को लगातार ढाला जाता है, जिससे शुद्ध सोने की सिल्लियाँ (Ingots) बनाई जाती हैं।
यह विधि बड़ी मात्रा में शुद्ध सोने के उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है।
थर्मल सेपरेशन (Thermal Separation):
इस विधि में सोने के अयस्क को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है ताकि विभिन्न धातुओं और अशुद्धियों को अलग किया जा सके।
यह प्रक्रिया सोने को अन्य धातुओं से अलग करने में मदद करती है।
इन्फ्रारेड रिफाइनिंग (Infrared Refining):
इसमें सोने के अयस्क को इन्फ्रारेड किरणों के साथ गर्म किया जाता है।
यह विधि उच्च तापमान प्राप्त करने में सहायक होती है और सोने की शुद्धता बढ़ाती है।
कंपोजिट रिफाइनिंग (Composite Refining):
इसमें सोने के अयस्क को विभिन्न रासायनिक और भौतिक प्रक्रियाओं का संयोजन करके शुद्ध किया जाता है।
यह विधि अधिक जटिल और मिश्रित अयस्कों के लिए उपयोगी होती है।
हाई फ्रीक्वेंसी इंडक्शन हीटिंग (High Frequency Induction Heating):
इसमें सोने के अयस्क को उच्च आवृत्ति वाले विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र में गर्म किया जाता है।
यह विधि तेजी से पिघलाने और शुद्ध करने में सहायक होती है।
रोटरी हर्थ फर्नेस (Rotary Hearth Furnace):
इसमें सोने के अयस्क को एक घूर्णनशील भट्टी में रखा जाता है, जहां यह उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है।
यह विधि बड़े पैमाने पर सोने के निष्कर्षण के लिए उपयुक्त होती है।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सेपरेशन (Electromagnetic Separation):
इसमें सोने के अयस्क को विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के माध्यम से अलग किया जाता है।
यह विधि धातु के कणों को अन्य अशुद्धियों से अलग करने में सहायक होती है।
फ्रोट फ्लोटेशन (Froth Flotation):
इसमें सोने के अयस्क को पानी और रसायनों के साथ मिलाया जाता है और हवा के बुलबुले उत्पन्न किए जाते हैं।
सोने के कण बुलबुले के साथ सतह पर तैर जाते हैं और फिर उन्हें अलग किया जाता है।
माइक्रोवेव एसिस्टेड लीचिंग (Microwave Assisted Leaching):
इसमें सोने के अयस्क को माइक्रोवेव ऊर्जा का उपयोग करके लीच किया जाता है।
यह विधि अधिक कुशल और तेजी से निष्कर्षण में सहायक होती है।
प्लाज्मा आर्क रिफाइनिंग (Plasma Arc Refining):
इसमें सोने के अयस्क को प्लाज्मा आर्क के साथ पिघलाया जाता है।
यह विधि उच्च तापमान और उच्च शुद्धता प्राप्त करने में सहायक होती है।
इलेक्ट्रोलाइटिक प्यूरीफिकेशन (Electrolytic Purification):
इसमें सोने के अयस्क को इलेक्ट्रोलाइटिक सेल में रखा जाता है और विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
इस प्रक्रिया में अशुद्धियों को हटा कर शुद्ध सोना प्राप्त किया जाता है।
ऑटोक्लेव ऑक्सीडेशन (Autoclave Oxidation):
इसमें सोने के अयस्क को उच्च दबाव और तापमान में ऑटोक्लेव में ऑक्सीडाइज़ किया जाता है।
यह विधि सल्फाइड अयस्कों से सोने को निकालने में प्रभावी होती है।
क्यूपलेशन (Cupellation):
यह एक प्राचीन विधि है जिसमें सोने के अयस्क को लेड के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है।
लेड ऑक्सीकरण होकर अशुद्धियों को अलग करता है और शुद्ध सोना पीछे रहता है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन इलेक्ट्रोडिपोजिशन (Solvent Extraction Electrodeposition):
इसमें सोने के अयस्क को सॉल्वेंट में घोलकर इलेक्ट्रोडिपोजिशन के माध्यम से धातु को अलग किया जाता है।
यह विधि उच्च शुद्धता वाले सोने के निष्कर्षण के लिए उपयोगी होती है।
सोनिक सेपरेशन (Sonic Separation):
इसमें सोने के अयस्क को सोनिक तरंगों के साथ उपचारित किया जाता है।
सोनिक तरंगें कणों को अलग करने में मदद करती हैं और सोने का निष्कर्षण अधिक कुशल बनाती हैं।
क्लोरिन फ्लक्सिंग (Chlorine Fluxing):
इसमें सोने के अयस्क को क्लोरीन फ्लक्स के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है।
यह विधि सोने को अशुद्धियों से अलग करने में मदद करती है।
इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रीसिपिटेशन (Electrostatic Precipitation):
इसमें सोने के अयस्क को इलेक्ट्रोस्टेटिक फील्ड में रखा जाता है, जिससे धातु के कण प्रीसिपिटेट होकर अलग हो जाते हैं।
यह विधि धातु के कणों को अन्य अशुद्धियों से अलग करने में सहायक होती है।
लीड फ्लक्सिंग (Lead Fluxing):
इसमें सोने के अयस्क को लेड के साथ मिलाकर पिघलाया जाता है।
लेड अशुद्धियों को अलग करता है और शुद्ध सोना पीछे रहता है।
इन विधियों ने सोने के निष्कर्षण और शुद्धिकरण के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पुरानी और नई तकनीकों का संयोजन सोने के निष्कर्षण को अधिक कुशल, सुरक्षित, और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल बना रहा है। प्रत्येक विधि के अपने विशेष लाभ और सीमाएँ होती हैं, और उनका चयन अयस्क की प्रकृति, उपलब्ध संसाधनों और पर्यावरणीय चिंताओं के आधार पर किया जाता है।
फ़्यूमिंग (Fuming):
इस विधि में सोने के अयस्क को गर्म किया जाता है, जिससे कुछ धात्विक तत्व वाष्पित हो जाते हैं और सोना पीछे रह जाता है।
यह विधि अम्लीय और बेसिक अयस्कों दोनों के लिए उपयुक्त होती है।
ग्रेविटेशनल सेपरेशन (Gravitational Separation):
इसमें सोने के अयस्क को पानी या किसी अन्य माध्यम में डुबोकर गुरुत्वाकर्षण बल का उपयोग करके सोने के भारी कणों को अलग किया जाता है।
यह एक सरल और कम लागत वाली विधि है, जो विशेष रूप से छोटे पैमाने पर खनन के लिए उपयुक्त होती है।
एल्कलाइन साइनाइड लीचिंग (Alkaline Cyanide Leaching):
इसमें सोने के अयस्क को क्षारीय साइनाइड घोल में घोलकर सोने के कणों को अलग किया जाता है।
यह विधि सोने के निष्कर्षण की सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधियों में से एक है।
इलेक्ट्रोलाइटिक गोल्ड रिफाइनिंग (Electrolytic Gold Refining):
इसमें सोने को इलेक्ट्रोलाइटिक सेल में शुद्ध किया जाता है।
शुद्ध सोने को एनोड से कैथोड में स्थानांतरित किया जाता है, जिससे उच्चतम शुद्धता प्राप्त होती है।
चिल्ड कास्टिंग (Chilled Casting):
इसमें पिघले हुए सोने को ठंडे साँचे में डालकर ठंडा किया जाता है।
यह विधि उच्च गुणवत्ता वाली सोने की सिल्लियाँ (Ingots) बनाने के लिए उपयोगी होती है।
रिएक्टिव एक्सट्रैक्शन (Reactive Extraction):
इसमें सोने के अयस्क को रिएक्टिव सॉल्वेंट्स के साथ मिलाकर धातु को अलग किया जाता है।
यह विधि उच्च दक्षता और कम पर्यावरणीय प्रभाव के लिए जानी जाती है।
गैस लाइम लीचिंग (Gas Lime Leaching):
इसमें सोने के अयस्क को गैस और चूना पत्थर के साथ मिलाकर घोला जाता है।
यह विधि विशेष रूप से कठिन अयस्कों के लिए प्रभावी होती है।
सल्फर डाइऑक्साइड लीचिंग (Sulfur Dioxide Leaching):
इसमें सोने के अयस्क को सल्फर डाइऑक्साइड के घोल में घोला जाता है।
यह विधि सोने के निष्कर्षण में तेजी लाती है और कम पर्यावरणीय हानि करती है।
मैकेनिकल एलॉयिंग (Mechanical Alloying):
इसमें सोने के अयस्क को अन्य धातुओं के साथ मिलाकर पाउडर धातुकर्म तकनीकों का उपयोग करके शुद्ध किया जाता है।
यह विधि मिश्रधातु (Alloy) निर्माण के लिए उपयुक्त होती है।
मोल्टन साल्ट इलेक्ट्रोलिसिस (Molten Salt Electrolysis):
इसमें सोने के अयस्क को पिघले हुए नमक के इलेक्ट्रोलाइट में रखा जाता है और विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है।
यह विधि उच्च तापमान और उच्च शुद्धता प्राप्त करने में सहायक होती है।
कैल्सिनेशन प्रोसेस (Calcination Process):
इसमें सोने के अयस्क को ऑक्सीजन की उपस्थिति में उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है।
यह विधि कार्बनिक अशुद्धियों को हटाने में मदद करती है और सोने को अधिक शुद्ध बनाती है।
क्लोराइड वाष्पीकरण (Chloride Volatilization):
इसमें सोने के अयस्क को क्लोरीन गैस के संपर्क में लाया जाता है, जिससे सोने का क्लोराइड बनता है और वाष्पित हो जाता है।
यह विधि कठिन अयस्कों से सोने को निकालने में विशेष रूप से उपयोगी होती है।
डायरेक्ट मेटल्स रिडक्शन (Direct Metals Reduction):
इसमें सोने के अयस्क को रिड्यूसिंग एजेंट्स के साथ मिलाकर धातु को सीधे रूप में अलग किया जाता है।
यह विधि सरल और कुशल होती है, विशेष रूप से छोटे पैमाने पर प्रयोग के लिए।
इलेक्ट्रोमाइग्रेशन (Electromigration):
इसमें सोने के अयस्क को विद्युत प्रवाह के माध्यम से धातु के कणों को अलग किया जाता है।
यह विधि उच्च शुद्धता वाले सोने के निष्कर्षण के लिए उपयोगी होती है।
जिंक प्रीसिपिटेशन (Zinc Precipitation):
इसमें सोने के अयस्क को जिंक के साथ मिलाकर धातु को प्रीसिपिटेट किया जाता है।
यह विधि गोल्ड सायनाइड से सोने को पुनः प्राप्त करने में प्रभावी होती है।
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