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हम आखिरकार इन देवी देवताओं की पूजा क्यों करते है?

 

हम आखिरकार इन देवी देवताओं की पूजा क्यों करते है?

देवी-देवताओं की पूजा करना भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का

 महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके पीछे धार्मिक, सामाजिक, और मनोवैज्ञानिक कारण

 हैं। इसे समझने के लिए, हम इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देख सकते हैं:


हम आखिरकार इन देवी देवताओं की पूजा क्यों करते है?
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1      1. आध्यात्मिक दृष्टिकोण

  • ईश्वर का प्रतीक: हिंदू धर्म में देवी-देवताओं को ईश्वर के विभिन्न रूपों के रूप में देखा जाता है। हर देवी-देवता एक विशेष शक्ति या गुण का प्रतीक होते हैं, जैसे:
    • मां दुर्गा: शक्ति और साहस का प्रतीक।
    • भगवान गणेश: शुभारंभ और बाधा दूर करने के देवता।
    • भगवान विष्णु: पालनहार।
    • भगवान शिव: संहार और पुनर्जन्म के देवता।
    • सरस्वती देवी: विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री।

इनकी पूजा करके हम उन गुणों को अपने जीवन में लाने का प्रयास करते हैं।

  • अहंकार का समर्पण: पूजा के माध्यम से व्यक्ति अपनी इच्छाओं, कष्टों, और अहंकार को ईश्वर के चरणों में समर्पित करता है, जिससे उसे आंतरिक शांति मिलती है।

2     2. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण

  • प्रकृति का सम्मान: प्राचीन काल में लोग प्रकृति और उसके तत्वों को पूजते थे, जैसे सूर्य, जल, वायु, अग्नि। देवी-देवताओं को इन तत्वों का मानवीकरण किया गया, ताकि उनकी पूजा को सरल और सुलभ बनाया जा सके।
  • धार्मिक परंपराएं: समय के साथ, देवी-देवताओं के रूप में प्रतीकों का विकास हुआ, और उनके साथ जुड़ी कहानियां और परंपराएं समाज में फैल गईं।
  • सामूहिक एकता: पूजा और त्यौहार सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं, जिससे समाज में एकता और सहभावना बनी रहती है।

3     3. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • आस्था और विश्वास: पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास मिलता है। जब हम किसी देवी-देवता से प्रार्थना करते हैं, तो हम अपने भीतर सकारात्मक ऊर्जा और आशा का संचार महसूस करते हैं।
  • आत्म-निरीक्षण: पूजा के दौरान ध्यान और प्रार्थना से व्यक्ति आत्ममंथन करता है, जिससे मानसिक शांति मिलती है।
  • संकल्प और प्रेरणा: देवी-देवताओं की कहानियां हमें प्रेरित करती हैं कि कैसे वे कठिनाइयों को पार करके विजय प्राप्त करते हैं।

4    4. कर्म और धर्म का महत्व

  • धर्म और कर्तव्य: हिंदू धर्म में "धर्म" को जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक माना गया है। पूजा धर्म का हिस्सा है, जो हमें अपने कर्तव्यों और नैतिकता की याद दिलाती है।
  • कर्मफल सिद्धांत: यह मान्यता है कि देवी-देवताओं की पूजा से हमारे बुरे कर्मों का प्रभाव कम होता है, और अच्छे कर्मों का फल मिलता है।

5    5. प्रतीकात्मकता का महत्व

  • देवी-देवता केवल व्यक्तित्व नहीं, बल्कि प्रतीक हैं:
    • काली माता: समय और परिवर्तन का प्रतीक।
    • लक्ष्मी: धन, समृद्धि और वैभव का प्रतीक।
    • हनुमान: अटूट भक्ति और शक्ति का प्रतीक।

इनकी पूजा हमें यह सिखाती है कि इन गुणों को कैसे अपने जीवन में अपनाया जाए।


6    6. मोक्ष और पुनर्जन्म का सिद्धांत

  • मोक्ष प्राप्ति: देवी-देवताओं की पूजा का अंतिम उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्त करना है।
  • पुनर्जन्म का चक्र: यह विश्वास है कि पूजा और धर्म का पालन करके व्यक्ति पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सकता है।

7     7. वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • मंत्रों और पूजा का प्रभाव:
    • मंत्रोच्चारण से ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो मन और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
    • दीपक जलाने और धूप देने से वातावरण शुद्ध होता है।
  • ध्यान और ध्यानावस्था: पूजा में ध्यान केंद्रित करने से मानसिक तनाव कम होता है और मस्तिष्क शांत होता है।

8    8. नैतिक शिक्षा का माध्यम

  • देवी-देवताओं की कहानियां जैसे रामायण और महाभारत जीवन की जटिलताओं को समझाने के लिए नैतिक शिक्षा प्रदान करती हैं।
  • यह हमें सिखाती हैं कि जीवन में सही और गलत का चुनाव कैसे किया जाए।

9    निष्कर्ष

देवी-देवताओं की पूजा करना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन, समाज, और मनोविज्ञान का एक अभिन्न हिस्सा है। यह हमें हमारे कर्तव्यों, नैतिकता, और आत्म-विकास के रास्ते पर ले जाने का एक साधन है। पूजा के माध्यम से हम ईश्वर से जुड़ाव महसूस करते हैं और अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भरते हैं।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कहें तो, देवी-देवता हमारे अपने भीतर की शक्ति, गुण, और सत्य को जागृत करने के प्रतीक हैं।

  • 1. देवी-देवताओं की पूजा का दर्शन
  • (a) सगुण और निर्गुण भक्ति का सिद्धांत

हिंदू धर्म में ईश्वर की उपासना के दो रूप माने गए हैं:

1.     सगुण भक्ति: देवी-देवताओं की मूर्तियों, रूपों, और लीलाओं के माध्यम से ईश्वर का ध्यान।

o    व्यक्ति को ध्यान केंद्रित करने के लिए एक प्रत्यक्ष रूप (फॉर्म) की आवश्यकता होती है।

o    भगवान के गुणों और शक्तियों को समझने के लिए देवी-देवताओं की कहानियां प्रेरणा का कार्य करती हैं।

2.   निर्गुण भक्ति: बिना किसी रूप या मूर्ति के ईश्वर का ध्यान।

o    यह एक उच्च आध्यात्मिक अवस्था है, जिसमें व्यक्ति ईश्वर को केवल ऊर्जा, सत्य, और ब्रह्मांडीय शक्ति के रूप में देखता है।

o    यह ध्यान, योग, और आत्म-चिंतन के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।

देवी-देवताओं की पूजा सगुण भक्ति का हिस्सा है, जो सामान्य मानव को अध्यात्म से जोड़ने का एक सरल माध्यम है।


  • 2. देवी-देवताओं की पूजा का उद्देश्य
  • (a) जीवन के चार पुरुषार्थ (Purusharthas):

हिंदू दर्शन में जीवन के चार उद्देश्य बताए गए हैं:

  • धर्म (कर्तव्य): सही और नैतिक जीवन जीना।
  • अर्थ (समृद्धि): धन और संसाधनों का सही उपयोग।
  • काम (इच्छाएं): जीवन की उचित इच्छाओं को पूरा करना।
  • मोक्ष (मुक्ति): आत्मा को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त करना।

देवी-देवताओं की पूजा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में की जाती है।

  • लक्ष्मी: अर्थ और समृद्धि का प्रतीक।
  • सरस्वती: ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक।
  • शिव: मोक्ष और आध्यात्मिक विकास के प्रतीक।

  • 3. देवी-देवताओं का प्रतीकवाद (Symbolism)
  • (a) प्रत्येक देवता के पीछे छिपे संदेश:

देवी-देवताओं की आकृतियां और उनकी लीलाएं प्रतीकात्मक हैं:

  • भगवान विष्णु: चार हाथ, जो चार उद्देश्यों (पुरुषार्थ) का प्रतीक हैं।
  • भगवान शिव: त्रिशूल, जो मन, शरीर और आत्मा पर नियंत्रण का प्रतीक है।
  • दुर्गा मां: राक्षस पर विजय, जो हमारे भीतर की बुराइयों को जीतने का प्रतीक है।
  • गणेश: बड़ा सिर, जो बड़ी सोच को दर्शाता है; बड़ा पेट, जो सहनशीलता को दर्शाता है।
  • (b) शक्ति और तत्व:
  • देवी-देवताओं को प्रकृति के तत्वों का मानवीकरण माना गया है। जैसे:
    • अग्नि: शक्ति और ऊर्जा।
    • जल: शुद्धता और तरलता।
    • सूर्य: प्रकाश और जीवन।

  • 4. पूजा का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
  • (a) मानसिक शांति और आश्रय:
  • पूजा के समय ध्यान केंद्रित करने से मन शांत होता है।
  • व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान ईश्वर पर छोड़कर हल्का महसूस करता है।
  • पूजा के दौरान बनाई गई सकारात्मक ऊर्जा आत्मविश्वास और साहस को बढ़ाती है।
  • (b) सामूहिक एकता:
  • पूजा और त्यौहार सामूहिक रूप से मनाए जाते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।
  • भक्ति में जाति, धर्म, और वर्ग का भेद मिट जाता है।
  • (c) नैतिकता का प्रचार:
  • देवी-देवताओं की लीलाएं हमें अच्छे और बुरे कर्मों का भेद सिखाती हैं।
  • जैसे: रामायण से मर्यादा, महाभारत से धर्म का पालन।

  • 5. पूजा और ऊर्जा विज्ञान (Energy Science)
  • (a) मंत्र और ध्वनि विज्ञान:
  • पूजा के समय उच्चारित मंत्रों से ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो वातावरण को सकारात्मक बनाती हैं।
  • जैसे: "ॐ" का उच्चारण मस्तिष्क और शरीर में शांति लाता है।
  • (b) हवन और दीपक जलाना:
  • हवन में उपयोग किए गए प्राकृतिक जड़ी-बूटियां वायु को शुद्ध करती हैं।
  • दीपक का प्रकाश और धूप की सुगंध मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं।
  • (c) ध्यान और एकाग्रता:
  • पूजा के समय ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है।
  • इससे तनाव और चिंता कम होती है।

  • 6. वैदिक और पौराणिक मान्यताएं
  • (a) वैदिक युग में उपासना:
  • वैदिक युग में सूर्य, अग्नि, और वायु जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती थी।

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Milan Tomic

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