गरीबी की ऐसी मार
दोस्तों गरीबी की ऐसी मार होती है कि इसका मारा पानी भी नहीं पी पाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है मेरे पापाजी एक सरकारी रेलवें में नौकरी करते थे सब गांव के लोग हमसे मिलने आते थे हमें कहते थे कि यहां से गुजर रहा था तो चलों बच्चों से भी मिलता चलूं। उनकी खातिर पानी अच्छी होती थी।
फिर एक दिन मेरे पापा एक रेल एक्सीडेंट में गुजर गए। घर की हालत खराब हो गयी चलों जो पापा की पेंशन थी वह हमारी माता के नाम आ गयी। हमने भी काम करना शुरू कर दिया। हम तीन भाई है घर की हालत तो सुधर गयी। लेकिन जो कमी होती है अपने मां बाप की वो कभी पूरी नहीं की जा सकती।
चलों धीरे-धीरे वक्त बदलता है माता की भी अचानक से मानसिक तबीयत बिगड़ जाती है वह भी दो से तीन साल तक बहुत बीमार चली पैसा भी खर्च ही हुआ। चलों कोई बात नहीं एक दिन अचानक से ऐसा होता है कि छत पर बैठी थी तो वहां पर गिर गयी। मानसिक रोग तो पहले से ही था।
अब पता नहीं कोई नस फटी या क्या हुआ दो दिन हमने अस्पताल में भी भर्ती की लेकिन डॉक्टर ने भी मना कर दिया। चलों वह तो अस्पताल की बात हुई वहां भी आज डॉक्टर नहीं कसाई है कसाई। गरीब की कही कोई सुनवाई नहीं होती भाई कोई मदद नहीं करता ।
दोनों माता-पिता चल बसें। आज सभी रिश्तेदारों ने मुँह मोड़ लिया है कोई मदद के लिए आगे नहीं आता है आज वह स्थिति है कि किसी को सौ बार कहें ना घर आनें की फिर वह एक बार सोचता है तो यह होता है दोस्तों गरीबी का आलम।
गरीबी बहुत बड़ा रोग है जिसे कोई नहीं चाहता है। ना तो उसे जो उसमें फंसा है ना ही उसे जो उसे निकालने की कोशिश करता है। दोनों ही व्यक्तियों को बहुत ही संघर्ष करना पड़ता है। आज तो यह समय आ गया है कि अपनी पत्नि ही अपना साथ नहीं देती है।
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