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मारूति से आथोराइज्ड सेंटर

मारूति से आथोराइज्ड सेंटर

 कल 09 अक्टूबर 2024 था दिन बुधवार शाम के 5ः30 का समय था मैड़म आई मै यहां मारूति से आथोराइज्ड सेंटर में कार्य करता हूँ तो बात कुछ ऐसे हुई जॉब कार्ड जिससे सभी गाडियों की एंट्री की जाती है उसमें आमतौर पर पूरें 100 पेज होते है एक ऑरिजन्ल और कार्बन कांपी के लिए होता है कार्बन कांपी का इसमें हम नहीं गिनते है केवल जोड़े हम गिनते है जो कि गिनती में 100 होते है। 

अब हुआ ऐसा कि उसमें 96 पेजस आते है अब  मैडम को कैसे पता चलता है कि इसमें इतने पेजस है उस पर पड़ी संख्या की वजह से सीरियल नंबर की वजह से। तो मैडम दिमाग लगाती है कि कुछ गड़बड़ हुई है हमारा इस तरफ कोई ध्यान नहंी जाता है क्यांेकि हम एक वर्कर की तरह सोचते है वह एक मालिक की तरह सोचती है तो दोनों के सोचने में बहुत ही जमीन और आसमान का फर्क होता है। कल एक सीख ही मुझें मिली। 

कि एक मालिक का दिमाग कहां तक दौड़ सकता है। और एक कर्मचारी का दिमाग कहां तक होता है बस सैलरी तक होता है और कही तक भी नही होता है। 

कल मेरा आखिरी दिन।

कुछ तो अपनी घर की समस्याएं होती है कुछ बच्चों की वजह से कुछ परिवार के वजह से कुछ समस्याएं समाज की वजह से होती है आखिर जिस परिवार और समाज के बीच हम रह रहें है कुछ अपनी दैनिक जरूरत होती है। तो उनको पूरा करने के लिए ही हम समाज में जाते है एक समाज का निर्माण होता है पर जब वह कार्य पूरा नहीं होता है तो तनाव उत्पन्न होता है कुछ बातें व्यक्ति के दिमाग में घर कर जाती है। तो कल मेरे दिमाग कुछ ऐसी ही बातंे चल रही थी। तो मैडम के दिमाग अपने व्यापार ऑफिस को लेकर बातें चल रहीं होगी। 

आखिर मालिक है भई! अपने व्यापार के अच्छे बुरें के लिए सभी सोचते है तो इसी उलझन में मैडम ने मुझसें बात की तो बात इतनी बिगड़ गयी कि नौकरी छोडने पर बात आ गई। तो मेरा भी दिमाग घूमा हुआ था तो मैनें भी साफ-साफ मना कर दिया। इस प्रकार कुल मिलाकर यह बात हुई कि कल ही सैलरी मिलने वाली थी तो मैनें कह दिया कि आप मेरा हिसाब कर देना। तो मैडम ने भी उस समय कह दिया। 

पर बाद मे मैडम ने मुझे समझाया कि बेटा ऐसे आवेश में आकर नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए। तो मै तो पहले से ही दिमाग में भूना बैठा था तो जब मैडम जो कि वर्कशाप की मालिक है उसने ही बाद नर्मी दिखाई तो मैनें भी फिर आराम से बात की। और मामला सुलझ गया। भई हम एक तो कम पगार में काम कर रहें है ऊपर से आप हमारा फंड बोनस भी नहीं दे रही है। 

और जो तनख्वाह मिल रही है वह भी समय से नही मिल रही है तो कुल मिलाकर यहां ठहरना एक सजा के माफिक है। एक गरीब को गरीबी ही मिलती है वह ऊपर उठे तो उठे कैसें एक मालिक सोचता है कि कर्मचारी हमारें यहां फ्री ही कार्य करें। हर तरफ से कर्मचारी को मजबूर किया जाता है। 

आज की शाम को आवेश और अरूण जो कि मेरे बच्चों को घर छोड़कर जाता है ।

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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