ज्ञान और विज्ञान में अंतर
ज्ञान से ही विज्ञान प्रकट हुआ है।
ज्ञान क्या होता है ?
विज्ञान क्या है ?
यह विचार हम सभी के मन में
आते है।
आज के इस लेख में आपकी यह समस्या दूर
हो जाएगी। बस आपको ध्यान से पढ़ने की जरूरत है। और महसूस करके पढ़ेगें तो क्या कहने।
ईश्वर एक हाथ में ज्ञान रखता है और उसी हाथ मे ज्ञान संकल्प से जो वस्तु बनी हैं उसी के बारें में जानना विज्ञान कहलाता है।
यही असल में विज्ञान होता है। विज्ञान से कुछ नया निर्माण नहीं होता है। ना ही विज्ञान में इतनी ताकत है कि कोई नयी वस्तु को बना सकें।
जो यहा इस पृथ्वी और संसार में मौजूद है उसी के बारें में बारीकी से जानना ही विज्ञान है। ईश्वर के लिए यह करना एक खेल है
और जो हर पल हर सैकण्ड हर मिनट चलता रहता है वहां प्रत्येक वस्तु ज्ञान संकल्प से नई बन रही है।
मानव उस वस्तु के बारें में जानने की इच्छा रखता है वह उसके निर्माण उसमें कौन-कौन से तत्व है किन-किन चीजों से मिलकर बना है इसी में लगा रहता है।
ईश्वर के हाथ में ज्ञान हैं। उसे किसी वस्तु का विज्ञान जानने की जरूरत नहीं है उसे सब पता है, मानव के लिए वह वस्तु नई है जानने की जरूरत है उस वस्तु के प्रत्येक तत्व के बारें में अनजान है
उसकी प्रत्येक आकार, रचना, तत्वों के बारें में जानकारी कर नोट करना चाहता है तो इस प्रकार का कार्य ही विज्ञान बन जाता है।
ज्ञान क्या है।
ज्ञान एक इच्छा से प्रकट मूर्त रूप है जिसे
हम छू सकते है महसूस कर सकते है। ज्ञान से प्रकट वस्तु को देख सकते है। ज्ञान की
जितनी व्याख्या की जाए कम है।
विज्ञान ज्ञान से प्रकट वस्तु की विस्तृत
स्टेप दर स्टेप व्याख्या हैं।
अब बात करते है वैज्ञानिक कौन है?
जो व्यक्ति उस ज्ञान से प्रकट वस्तु के बारें में अच्छी तरह से जान लेता है उसकी जितनी अधिक सुन्दर व्याख्या कर पाएगा उतना ही बड़ा वैज्ञानिक कहलाएगा।
उसे महसूस कर पाता है उसको चाहे वह किसी भी भाषा में लिख पाए पर अगर वह ज्ञान से प्रकट वस्तु के बारें सम्पूर्ण व्याख्या कर पाने में सक्षम है तो वह वैज्ञानिक है
चाहे भाषा हिन्दी हो, अंग्रेजी हो या फिर दुनिया की किसी भी भाषा में वह अनुवाद कर पाता है। वह उतना ही बड़ा वैज्ञानिक बन पाता है।
लेकिन शायद ही कोई संसार की एक वस्तु, मै संसार की केवल एक ही वस्तु के बारें में बात कर रहा हूँ अपने पूरे जीवन काल में उस एक पूरी वस्तु की व्याख्या कर पाया हो।
इसे समझने में वैज्ञानिक समाज को एक जीवन काल देकर भी उस वस्तु की व्याख्या नहीं कर सकता है। अगर कर पाया तो समझों वह ज्ञान के इतने नजदीक है जहां वह वस्तु का निर्माण भी कर सकता है।
निर्माण करने के लिए उसे ‘‘वि’’ इस कवर को हटाना पड़ेगा।
''वि'' कुछ नहीं है एक वस्तु की विस्तृत व्याख्या ही ‘‘वि’’ को जन्म देती
है। अपने आप यह वैज्ञानिक इसका अर्थ कुछ भी निकाल लें। इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता
है।
क्या हम निर्माण कर्त्ता को देख सकते है?
इसका उत्तर है हाँ।
क्यों नही वह तो भई हमारा बेसबरी से इंतजार कर रहा है।
वह कहता है भई आप एक कदम बढ़ओं मै तो भागा चला
आउगा।
आप देखने का मन बनाओं।
मैं तो सामने ही खड़ा हूँ। छुपा ही कहां था।
जो दिखूगां।
ईश्वर कहां मिलता है?
कहां रहता है?
क्यों हमारी चीख पुकार नहीं सुनता है।
क्यों हमारे बार-बार बुलाने पर नहीं आता है।
हम इतनी पूजा-पाठ करते है फिर भी ईश्वर हमें क्यों नहीं मिलतें है।
हम इतनी दिन-रात पूजा करते है फिर भी नहीं मिलते है।
आप
कहते होे एक कदम बढ़ाओं हम तो पूरे के पूरे ईश्वर को समर्पित है फिर भी नहीं मिलतें
है।
गीता का ईश्वर भी कहता है कि मनुष्य अगर एक कदम बढ़ाएं तो मै दो कदम बढ़ाता हूँ।
आखिर मैनें कौन से इतने पाप किए है कि मुझे
दिखाई क्यों नहीं देता है।
फिर कुछ गुरूजन कहते है कि आपका मन साफ नहीं है।
अरें! यार अब इसमें कौन सा कपड़े धोने वाला सर्प मारू कि साफ हो जाए। इतनी पूजा-पाठ से भी साफ नहीं हुआ तो आप ही बता दो कौन से सर्प से धोना है।
परेशान हो
गया हूँ इस दुनिया के ज्ञान से। ईश्वर नहीं मिलते तो मन साफ नहीं है। आखिर करू तो
क्या करूं।
इतनी बैचेनी हो रही है इतनी आफत आ रही है। और कहते है शांत बैठकर देखों तो ईश्वर जरूर मिल जाएगें।
अरें! यार ये भी करके देख लिया शांत बैठने से निंद आती है ईश्वर नहीं मिलते है।
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