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ईद क्या होती है?

 

ईद क्या होती है?


ईद क्या होती है?

ईद इस्लाम धर्म का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे मुसलमान बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। मुख्य रूप से दो प्रकार की ईद होती हैं:

1.    ईद-उल-फित्र (मीठी ईद) – यह रमज़ान के पूरे होने के बाद मनाई जाती है। रमज़ान के महीने में मुसलमान रोज़े रखते हैं और फिर चाँद देखने के बाद अगले दिन ईद-उल-फित्र का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन विशेष नमाज़ पढ़ी जाती है, गरीबों को दान (फित्रा) दिया जाता है और मीठे पकवान (जैसे सेवइयाँ) बनाए जाते हैं।

2.  ईद-उल-अज़हा (बकरीद) – इसे क़ुर्बानी की ईद भी कहते हैं। यह हज़रत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति निष्ठा और बलिदान की याद में मनाई जाती है। इस दिन जानवर (जैसे बकरी, भेड़ या ऊँट) की क़ुर्बानी दी जाती है और उसका मांस गरीबों, रिश्तेदारों और अपने लिए तीन हिस्सों में बाँटा जाता है।

दोनों ईदें भाईचारे, प्रेम और खुशी का संदेश देती हैं, जिसमें सभी लोग मिलकर एक-दूसरे को बधाई देते हैं और दुआएँ माँगते हैं।

ईद की शुरूआत कब से मानी जाती है?

ईद की शुरुआत इस्लाम के प्रारंभिक काल से मानी जाती है, खासकर पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय से।

1. ईद-उल-फित्र की शुरुआत:

  • इस्लाम से पहले अरब में अलग-अलग तरह के त्योहार मनाए जाते थे, लेकिन जब पैगंबर मोहम्मद मदीना पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ के लोग दो खास दिन मनाते हैं।
  • तब पैगंबर साहब ने कहा कि अल्लाह ने इन दो दिनों के बदले ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अज़हा के त्योहार दिए हैं, जो ज्यादा पवित्र और नेकियों से भरे हुए हैं।
  • पहली बार ईद-उल-फित्र हिजरी 2 (624 ईस्वी) में मनाई गई, जब रोज़ों (रमज़ान) को इस्लाम में अनिवार्य किया गया।

2. ईद-उल-अज़हा की शुरुआत:

  • इसकी जड़ें इस्लाम से भी पहले की हैं और हज़रत इब्राहिम (अलैहि सलाम) से जुड़ी हैं।
  • कहा जाता है कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम की परीक्षा ली और उनसे अपने बेटे इस्माइल (अलैहि सलाम) की क़ुर्बानी देने को कहा।
  • जब इब्राहिम (अ.स.) ने अल्लाह के आदेश का पालन करने के लिए बेटे की क़ुर्बानी देने का प्रयास किया, तो अल्लाह ने इसे रोककर उसकी जगह एक मेमने (दुम्बा) की क़ुर्बानी का आदेश दिया।
  • इसी घटना की याद में हर साल हज के दौरान (10 ज़िल-हिज्जा को) ईद-उल-अज़हा मनाई जाती है।

निष्कर्ष:

ईद की शुरुआत इस्लाम के शुरुआती वर्षों में हुई और यह मुसलमानों के लिए धार्मिक आस्था, दान, भाईचारे और खुशी का प्रतीक बन गई।

रोजा रखने की परम्परा के बारें में बताओं।

रोज़ा रखने की परंपरा (इस्लाम में उपवास का महत्व)

रोज़ा (उपवास) इस्लाम धर्म के पाँच स्तंभों (फाइव पिलर्स ऑफ़ इस्लाम) में से एक है। यह आत्मसंयम, ईमान, अल्लाह के प्रति भक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है।

1. रोज़े की शुरुआत कब हुई?

  • इस्लाम में रोज़े की परंपरा हिजरी 2 (624 ईस्वी) में शुरू हुई, जब अल्लाह ने यह आदेश दिया कि सभी वयस्क और स्वस्थ मुसलमानों को रमज़ान के पूरे महीने में रोज़ा रखना चाहिए।
  • यह आदेश कुरआन की इस आयत में आया:

"ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं, जैसे तुमसे पहले के लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम तक़वा (परहेज़गारी) हासिल कर सको।" (कुरआन, सूरह अल-बक़रह 2:183)

2. रोज़ा रखने की परंपरा कैसे निभाई जाती है?

रोज़े के दौरान एक मुसलमान को सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी खाने-पीने और बुरी आदतों से बचने का आदेश दिया गया है।

1.    सहरी (Sehri/Suhoor):

o    रोज़ा शुरू करने से पहले सुबह-सुबह (फ़जर की अज़ान से पहले) हल्का खाना खाया जाता है, जिसे सहरी कहते हैं।

o    इसे इस्लाम में बहुत फ़ज़ीलत (महत्व) दी गई है। पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) ने कहा:

"सहरी किया करो, क्योंकि इसमें बरकत (आशीर्वाद) है।" (हदीस, बुखारी)

2.  इफ्तार (Iftar):

o    सूर्यास्त (मगरिब की अज़ान) के समय रोज़ा खोलने की प्रक्रिया इफ्तार कहलाती है।

o    पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) ने खजूर या पानी से रोज़ा खोलने की परंपरा शुरू की।

o    इफ्तार के समय दुआएँ पढ़ी जाती हैं और फिर खाना खाया जाता है।

3.  तरावीह नमाज़ (Taraweeh Salah):

o    रमज़ान की रातों में विशेष तरावीह नामक नमाज़ पढ़ी जाती है, जिसमें कुरआन की तिलावत (पाठ) की जाती है।

3. रोज़े का उद्देश्य और लाभ

  • आत्मसंयम और इच्छाओं पर नियंत्रण।
  • गरीबों और भूखों के दर्द को समझने की सीख।
  • आध्यात्मिक शुद्धि और अल्लाह से करीब होने का अवसर।
  • स्वास्थ्य लाभ – शरीर की डिटॉक्स प्रक्रिया होती है और आत्मनियंत्रण विकसित होता है।

4. किन लोगों को रोज़े में छूट दी गई है?

इस्लाम में कुछ लोगों को रोज़ा न रखने की अनुमति दी गई है, जैसे:

  • बीमार लोग
  • सफर (यात्रा) कर रहे लोग
  • गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएँ
  • बहुत बुज़ुर्ग या कमज़ोर लोग

लेकिन बाद में वे इन रोज़ों की क़ज़ा (छूटे हुए रोज़ों की भरपाई) कर सकते हैं या गरीबों को खाना खिला सकते हैं (फिदया देना)।

5. रोज़े की परंपरा अन्य धर्मों में भी

रोज़े या उपवास की परंपरा सिर्फ इस्लाम में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी पाई जाती है, जैसे:

  • हिंदू धर्म में एकादशी, नवरात्रि और करवा चौथ के व्रत।
  • ईसाई धर्म में लेंट (Lent) का उपवास
  • यहूदी धर्म में योम किप्पुर (Yom Kippur) का उपवास

निष्कर्ष

रोज़ा सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक सुधार, आत्मसंयम, गरीबों की मदद और अल्लाह के करीब आने का एक ज़रिया है। रमज़ान का महीना इसी परंपरा का सबसे बड़ा उदाहरण है।

अल्लाह और ईश्वर के बारें में बताओं ।

अल्लाह और ईश्वर: क्या दोनों एक ही हैं?

अल्लाह और ईश्वर दोनों ही शब्द उस सर्वोच्च शक्ति के लिए उपयोग किए जाते हैं जिसे सृष्टि का रचयिता, पालनकर्ता और संहारकर्ता माना जाता है। हालाँकि, ये शब्द अलग-अलग धार्मिक परंपराओं से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनका मूल अर्थ एक ही है—एक परम सत्ता, जो अनंत, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञानी है।


1. "अल्लाह" का अर्थ और इस्लाम में धारणा

  • "अल्लाह" अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है "सिर्फ एक सच्चा ईश्वर"
  • इस्लाम के अनुसार, अल्लाह अद्वितीय (एकमात्र), निराकार (कोई रूप नहीं) और शाश्वत (हमेशा रहने वाला) है।
  • इस्लाम में तौहीद (एकेश्वरवाद) पर ज़ोर दिया गया है, यानी सिर्फ अल्लाह की इबादत करनी चाहिए।
  • इस्लामी ग्रंथ कुरआन में कहा गया है:

"कहो कि वही अल्लाह एक है। अल्लाह बे-नियाज़ है। न उसकी कोई औलाद है और न वह किसी से पैदा हुआ। और न ही कोई उसका हमसर (बराबर) है।" (कुरआन, सूरह अल-इख़लास 112:1-4)


2. "ईश्वर" का अर्थ और हिंदू धर्म में धारणा

  • "ईश्वर" संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है "परमेश्वर, परम सत्ता, सृष्टि का रचयिता"
  • हिंदू धर्म में ईश्वर को कई रूपों में पूजा जाता है—निर्गुण (बिना रूप वाला) और सगुण (रूप वाला)
  • वेदों और उपनिषदों में ईश्वर को "ब्रह्म" कहा गया है, जो निराकार और सर्वव्यापी है।
  • भगवद गीता में कहा गया है:

"ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।" (गीता 18.61)
(अर्थ: ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में निवास करता है।)


3. क्या अल्लाह और ईश्वर एक ही हैं?

  • दोनों शब्द अलग-अलग भाषाओं और धर्मों से आए हैं, लेकिन मूल भावना एक ही है—सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जो पूरे ब्रह्मांड का स्वामी है
  • इस्लाम में अल्लाह को निराकार और अकेला माना जाता है, जबकि हिंदू धर्म में ईश्वर को निर्गुण (ब्रह्म) और सगुण (राम, कृष्ण, शिव आदि) रूप में भी स्वीकार किया जाता है।
  • दोनों ही धाराओं में अध्यात्म, भक्ति, और नैतिकता का महत्व बताया गया है।

4. प्रमुख अंतर

विशेषता

इस्लाम (अल्लाह)

हिंदू धर्म (ईश्वर)

रूप

निराकार

निर्गुण और सगुण दोनों

धर्मग्रंथ

कुरआन

वेद, उपनिषद, गीता

उपासना

केवल अल्लाह की इबादत

विभिन्न रूपों में पूजा (ब्रह्म, विष्णु, शिव, देवी आदि)

एकेश्वरवाद

सख्त एकेश्वरवाद (तौहीद)

अद्वैतवाद, द्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद आदि विचारधाराएँ


5. निष्कर्ष

  • अगर गहराई से देखा जाए तो अल्लाह और ईश्वर का मूल भाव एक ही है—सर्वशक्तिमान ईश्वर, जो सबका रचयिता और पालनहार है
  • अंतर सिर्फ भाषा, संस्कृति और उपासना के तरीकों में है।
  • आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, हर धर्म का उद्देश्य इंसान को नैतिकता, सच्चाई और प्रेम की ओर ले जाना है।

इस्लामिक (हिजरी) कैलेंडर में 12 महीने होते हैं, जो चंद्रमा (मून) के आधार पर तय किए जाते हैं। ये महीने इस प्रकार हैं:

1.    मुहर्रम (Muharram) – इस्लामिक साल का पहला महीना, इसे पवित्र माना जाता है।

2.  सफ़र (Safar) – इस महीने को ऐतिहासिक घटनाओं के लिए जाना जाता है।

3.  रबीउल-अव्वल (Rabi' al-Awwal) – पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) का जन्म इसी महीने में हुआ था।

4.  रबीउस-आखिर (Rabi' al-Thani) – इसे रबी-उल-सानी भी कहते हैं।

5.  जुमादिल-ऊला (Jumada al-Awwal) – इस्लामिक कैलेंडर का पाँचवाँ महीना।

6.  जुमादिस-आखिर (Jumada al-Thani) – इसे जुमादा-उल-सानी भी कहते हैं।

7.   रजब (Rajab) – इसे इस्लाम में पवित्र महीना माना जाता है।

8.  शाबान (Sha'ban) – रमज़ान की तैयारी का महीना।

9.  रमज़ान (Ramadan) – सबसे पवित्र महीना, जिसमें रोज़े रखे जाते हैं।

10.                     शव्वाल (Shawwal) – ईद-उल-फित्र का महीना।

11.                        ज़िलक़ादा (Dhul-Qa'dah) – हज से पहले का महीना।

12.                      ज़िलहिज्जा (Dhul-Hijjah) – इस महीने में हज किया जाता है और ईद-उल-अज़हा (बकरीद) मनाई जाती है।

नोट:

  • हिजरी कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है, इसलिए इसमें दिन 29 या 30 दिन के होते हैं।
  • इस्लाम में मुहर्रम, रजब, ज़िलक़ादा और ज़िलहिज्जा को पवित्र (हराम) महीने कहा जाता है।

 

·         Days of the week in English and their equivalents in Arabic and Hindi:

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Hindi (हिन्दी)

Sunday

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रविवार

Monday

الإثنين (Al-Ithnayn)

सोमवार

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मंगलवार

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الأربعاء (Al-Arbi‘a)

बुधवार

Thursday

الخميس (Al-Khamis)

गुरुवार

Friday

الجمعة (Al-Jum‘ah)

शुक्रवार

Saturday

السبت (As-Sabt)

शनिवार

 

 

 

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Milan Tomic

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