रोज दिन की शुरूआत

              
रोज दिन की शुरूआत

                     रोज दिन की शुरूआत


 रोज दिन की शुरूआत 

रोज दिन की शुरूआत कुछ अलग ही तरीके से होती है सुबह जागते ही कुछ चीजें होती है जो दिमाग से ओझल हो जाती है और कुछ मानसिक पटल पर बनीं रहती है। चीजों को याद रखना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में। 

अगर आप इंटरनेट पर सर्च करोगों तो पाओंगे कि वहीं घिसे-पिटे तरीकें आपकों देखने को मिलेगे। 

उनमें से कुछ लाईन इस प्रकार होगी। आप एक सूची बनाइएं उन्हें रोज दोहराइए।

आप अपने काम को ध्यान से करें। वगैरह वगैरह मैं तो इन सब बातों से परेशान हो चुका हूॅ। कोई ऐसी तकनीक जो इन सबसे परें हो और बेहतरीन हो। मैं एक ऐसी तकनीक के पीछे कार्य कर रहा हूॅ ताकि मरने के बाद भी मेरे इस जन्म की बातें याद रख सकूॅ और क्या यह तकनीक नयी सोच है नहीं अगर आप हमारें इतिहास के बारें में जानेगें तो पाएगें कि यह तकनीक इतनी नई नहीं और मैं तो कहूॅगां कुछ भी नया नहीं है सबकुछ ध्यान और ध्यान के प्रयोगों पर आधारित है। 

ध्यान ही एक ऐसी विधि कह सकते है या दवा कह सकते है या आप रामबाण कह सकते है यही वह विधि है जिससे हम अपने जन्मों-जन्मों के कर्म बंधनों से तो मुक्त हो ही सकते है, साथ ही एक अजेय मानसिक शक्ति के मालिक भी बन सकते है यह हमारे ऋषि-मुनियों ध्यानियों ने किया है अतः अगर हम भी इस मार्ग पर चलें तो सबकुछ पा सकते है। और इसमें कोई दोहराएं नहीं हो सकती।

एक छात्र का जीवन और याददाश्त का बार-बार लुप्त हो जाना। 

एक छात्र जीवन में जब हम होते है तो हमें रोज एक नया जीवन जैसा जीना होता है हर रोज जीना मरना जैसा लगता है। हर दिन नई चीजों का सीखना पर उनमें से कुछ ही अंश हमारें मस्तिष्क में बचे रहते है। अब छात्र जीवन इतना संघर्ष पूर्ण होता है कि एक गजनी जीवन हम रोज जीते है। याद करने के नए-नए तरीके खोजना । मैं आज भी याद करने के तरीके के बारें में खोजता रहता हूॅ फिर या तो कोई किताब हो या अखबार हो टीवी में कोई तकनीक बताता हो या यू-टयूब पर कोई जानकारी शेयर करता हो सभी को देखता हॅू पर अतः एक ही बात समझ आती है निरन्तरता ये बड़ी काम की चीज है आपकों एक शब्द लगता होगा लेकिन अब तक मैनें जितनी जानकारी ली है या किताबें पढ़ी है ये उन सबका निचोड़ है निरन्तरता। बस आप इसकों बनाएं रखिए ये आपकी याददाश्त को बनाएं रखेगी। इससे बड़ी न तो कोई दवा है ना ही कोई च्यवनप्राश। 

आप बस इस निरन्तरता को समझ लीजिए। बाकी आप इस निरन्तरता पर छोड़ दीजिए एक बार आप इसकों कायम रखना सीख लीजिए आप सबकुछ पा सकते है। यह एक ऐसी तकनीक ऐसा गुण ऐसी सीख ऐसी जादू की ट्रिक है जिसके आगे सबकुछ पंगु है। पर इसकों कायम रखने के लिए आपको बहुत ज्यादा शक्ति की जरूरत होगी। इसकों कायम रखना भी अपने आप में एक बाहुबली बनना है। 

नकारात्मक और सकारात्मक

जब एक इंसान अपने जीवन में इतना पेरशान होता है कि उसें कुछ नजर नहीं आता है तब वह नकारात्मकता के गर्भ में डूब जाता है वह कहता है कि इस जीवन में कुछ भी अच्छा नहीं है। पर सकारात्मकता इतनी बेहतरीन शक्ति है जैसे आप केला खाने के बाद थोड़ी से ऊर्जा को अपने शरीर में महसूस करते है ठीक उसी प्रकार अगर आप सकारात्मकता से किसी वस्तु की ओर देखेगें तो आपकों कई रास्ते नजर आ जायेगें। सकारात्मकता, निरन्तरता, कठिन परिश्रम, ध्यान, योग, ये सब ऐसे शब्द है जो व्यक्ति इन्हें अपने जीवन पूरी श्रद्धा से अपने जीवन में उतार लेता है वह नर से नारायण बन सकता है। 

अब बात करते है श्रद्धा की। 

श्रद्धा वह आत्मविश्वास है अगर आप अपने दिमाग में यह सोच लें कि अमुक कार्य मुझे करने पर मुझे कोई अड़चन नहीं आने वाली तो सच में नहीं आएगी। श्रद्धा वह दिव्य नेत्र का काम करता है जिससे आप इसकी तुलना दिव्य चक्षु से कर सकते है क्योकि इनमें ज्यादा अंतर नहीं है एक श्रद्धावान व्यक्ति एक भगवान के स्वरूप की कल्पना कर सकता है और जबकि आप दिव्य चक्षु से भगवान को साक्षात साक्षात देख सकते है दोनों में विश्वास देखना दूसरें के देखें जाने पर वह वर्णन करता है उसकी बातों पर विश्वास करना होता है उसी प्रकार मन की आंखों पर विश्वास करना होता है। क्यांेकि श्रद्धा मन के देखे हुए पर विश्वास करना होता है। और दिव्य चक्षु को खोलने में यह तकनीक सर्वश्रेष्ठ सिद्ध होती है। 
दोस्तों आप मेंरे जीवन और अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकतें है। 


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